जन्माष्टमी का व्रत कैसे रहे? जन्माष्टमी व्रत का उद्यापन कैसे करें?

जन्माष्टमी का व्रत कैसे रहे (Janmashtami Ka Vrat Kaise Rahe)? श्रीमद भागवत पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र कृष्ण पक्ष, रोहिणी नक्षत्र, अर्धरात्रि कालीन अष्टमी तिथि, वृष राशि में बुधवार को हुआ था। अष्टमी तिथि को भगवान कृष्ण का अवतरण होने के कारण ही इस तिथि को कृष्णजन्माष्टमी के नाम से जाना और एक पुण्य तिथि माना जाता है। जिसे प्रत्येक वर्ष, पुरातन काल से ही मनाया भी जाता है। इस तिथि को श्रद्धापूर्वक सच्चे मन से व्रत रहने पर मनुष्य को विष्णुलोक की प्राप्ति भी हो जाती है।

जन्माष्टमी का व्रत कैसे रहे (Janmashtami Ka Vrat Kaise Rahe)?

जन्माष्टमी का व्रत कैसे रहे
Janmashtami Ka Vrat Kaise Rahe

जन्माष्टमी का व्रत कैसे रहे?

व्रत का संकल्प करने से एक दिन पहले से ही मन और ध्यान में कृष्ण की भक्ति का भाव जमा लेना व्रत के फल को बढ़ा देता है। घर का पूरा माहौल भक्तिमय कर लेने से आपके अंदर एक असीम ऊर्जा का संचार होने लगेगा, और आपका मन भक्तिमय हो जायेगा। फिर उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का सात्विक भोजन ग्रहण करे और ब्रह्मचर्य का पालन करें।

प्रातः उपवास के दिन जल्दी उठकर नित्यकर्म, स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करे, उसके पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्‌पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। और फिर व्रत का संकल्प करने के लिए जल, फल, कुश और गंध ले तथा दिए गए मंत्रो से व्रत का संकल्प करें –

ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥

संकल्प करने के पश्चात् अपना कार्य कर सकते है और दोपहर के फलाहार पाने के बाद घर में पूजा का स्थान नियत करे, और काले तिल से स्नान कर माता देवकी के लिए ‘सूतिकागृह’ का स्थान नियत करें। पूजा स्थल की  यथासंभव सजावट कर भगवान कृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

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जन्माष्टमी व्रत का उद्यापन कैसे करें?

रात 12 बजे भगवान का जन्म करें, उसके पश्चात उनका पंचामृत से अभिषेक कर,  नए कपड़े पहनाएं और श्रृंगार करें,  भगवान का चंदन से तिलक कर, उनका भोग तुलसी का पत्ता डालकर लगाएं। इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें। पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः अवश्य लेना चाहिए। फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें- 

‘प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः। वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः। सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।’

नन्द के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की, कहकर भगवान कृष्ण को झूला झुलाकर घी के दीपक और धूपबत्ती से आरती उतारें। अंत में प्रसाद वितरण व ग्रहण करें और रातभर उनके मंगल भजन-कीर्तन करते हुए रतजगा करें।

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