मकर संक्रांति क्या है? महत्व और मकर संक्रांति के बारे में जानकारी

मकर संक्रांति का महत्व, मकर संक्रांति के बारे में जानकारी

मकर संक्रांति क्या है (Makar Sankranti Kya Hai)? सूर्य को सभी ग्रहों का देवता माना जाता है। सूर्य सभी 12 राशियों को प्रभावित करता है, लेकिन सूर्य का कर्क और मकर राशि में प्रवेश लाभकारी माना जाता है। प्राचीन काल से ही मकर संक्रांति का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। इसी दिन से सभी शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।

Makar Sankranti Kya Hai – मकर संक्रांति क्या है?

मकर संक्रांति क्या है
Makar Sankranti Kya Hai?

मकर संक्रांति के बारे में जानकारी

हिंदू संस्कृति का मकर संक्रांति एक प्रमुख त्योहार है, जो 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन नामजप, तपस्या, दान, स्नान, श्राद्ध, तपस्या आदि धार्मिक गतिविधियों का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना बढ़ जाता है और उसका फल मिलता है। मकर संक्रांति का पर्व अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। मकर संक्रांति को तमिलनाडु में पोंगल के रूप में मनाया जाता है, कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश में इसे केवल ‘संक्रांति’ कहा जाता है। इस दिन से विभिन्न राज्यों में गंगा नदी के तट पर माघ मेला या गंगा स्नान का आयोजन किया जाता है। कुंभ का पहला स्नान भी इसी दिन से शुरू होता है। मकर संक्रांति क्या है? आईये जाने विस्तार से 

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मकर संक्रांति का महत्व 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में गमन करता है। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में गमन संक्रांति कहलाता है। मकर संक्रांति में ‘मकर’ शब्द राशि मकर को इंगित करता है, जबकि ‘संक्रांति’ का अर्थ गमन है। चूंकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, इसलिए इस समय को ‘मकर संक्रांति’ कहा जाता है। कुछ स्थानों पर मकर संक्रांति के पर्व को उत्तरायण भी कहा जाता है। इस दिन गंगा स्नान के बाद व्रत, कथा, दान और भगवान सूर्यदेव की पूजा का विशेष महत्व है।

जब सूर्य देव अपने पुत्र शनि की राशि मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे ‘मकर संक्रांति’ कहा जाता है। जब सूर्य की गति उत्तरायण होती है, तब कहा जाता है कि उसी समय से सूर्य की किरणें अमृत बरसाने लगती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सभी देवी-देवता अपना रूप बदलते हैं और गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम पर स्नान करने आते हैं। इसलिए इस अवसर पर गंगा स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। यह पर्व सूर्य की चाल के अनुसार निर्धारित होता है और सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने के कारण इस पर्व को ‘मकर संक्रांति’ और ‘देवदान पर्व’ के नाम से जाना जाता है।

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मकर संक्रांति की पौराणिक कथाएँ 

किंवदंती -1

पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान सूर्य देव स्वयं अपने पुत्र शनि के घर उनसे मिलने जाते हैं। चूंकि शनि मकर राशि के देवता हैं, इसलिए इसे मकर संक्रांति कहा जाता है।

किंवदंती – 2

महाभारत युद्ध के महान योद्धा और कौरव सेना के सेनापति गंगापुत्र भीष्म पितामह को मृत्यु का वरदान प्राप्त था। इस दिन के महत्व को जानकर उन्होंने अर्जुन के बाण के बाद अपनी मृत्यु के लिए इस दिन को निर्धारित किया था। भीष्म जानते थे कि जब सूर्य दक्षिणायन होता है, तो व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त नहीं होता है और उसे इस मृत्युलोक में फिर से जन्म लेना पड़ता है। महाभारत युद्ध के बाद जब सूर्य उत्तरायण हो गया, तब भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्याग दिए। भीष्म के निर्वाण दिवस को भीष्माष्टमी भी कहा जाता है।

किंवदंती – 3

एक धार्मिक मान्यता के अनुसार, संक्रांति के दिन मां गंगा स्वर्ग से अवतरित हुईं और राजा भगीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए गंगासागर पहुंचीं। पृथ्वी पर अवतरण के बाद राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों को गंगा के पवित्र जल से तर्पण किया। इस दिन गंगा सागर नदी के तट पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।

किंवदंती – 4

माता यशोदा ने इस दिन केवल संतान (श्री कृष्ण) की प्राप्ति के लिए व्रत रखा था। इस दिन महिलाएं अन्य महिलाओं को तिल, गुड़ आदि बांटती हैं। ऐसा माना जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु से हुई थी। इसलिए इसके सेवन से पापों से मुक्ति मिलती है। तिल के सेवन से शरीर स्वस्थ रहता है और शरीर में गर्मी का संचार होता है।

मकर संक्रांति क्यों मनाते है?

पौष मास के शुक्ल पक्ष में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण (उत्तर की ओर बढ़ते हुए) हो जाता है। शास्त्रों में उत्तरायण काल ​​को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात माना गया है। मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान, तप, जप, श्राद्ध और अनुष्ठानों का बहुत महत्व है। शास्त्रों के अनुसार इस अवसर पर किया गया दान सौ गुना मिलता है। मकर संक्रांति के दिन घी और कंबल के दान का भी विशेष महत्व है, इस पर्व का संबंध केवल धर्म से ही नहीं बल्कि ऋतु परिवर्तन और कृषि से भी है। इस दिन से दिन और रात दोनों बराबर होते हैं।

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मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व

मकर संक्रांति के वैज्ञानिक महत्व की बात करें तो इस दौरान सभी नदियों में वाष्पीकरण होता है। यह क्रिया कई प्रकार के रोगों को दूर करने में सहायक मानी जाती है। 

कहा जाता है कि इस दिन नदियों में स्नान किया जाता है, जिससे शरीर के अंदर के कई रोग दूर हो जाते हैं। जिससे आपकी शारीरिक कमजोरी दूर होती है। इस मौसम में तिल और गुड़ खाना बहुत फायदेमंद होता है। यह शरीर को गर्म रखता है। वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि उत्तरायण में सूर्य की गर्मी से सर्दी कम होती है।

आयुर्वेद में मकर संक्रांति का महत्व

आयुर्वेद के अनुसार इस मौसम में चलने वाली ठंडी हवाओं के कारण लोगों को कई तरह के रोग हो जाते हैं, इसलिए प्रसाद के रूप में खिचड़ी, तिल और गुड़ से बनी मिठाइयां खाने की प्रथा है। तिल और गुड़ से बनी मिठाई खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इन सभी चीजों के सेवन से शरीर के अंदर गर्मी बढ़ती है। तिल में कॉपर, मैग्नीशियम, ट्रिप्टोफैन, आयरन, मैंगनीज, कैल्शियम, फॉस्फोरस, जिंक, विटामिन बी1 और फाइबर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। एक चौथाई कप या 36 ग्राम तिल 206 कैलोरी ऊर्जा प्रदान करते हैं। यह गठिया के लिए बेहद फायदेमंद है।

खिचड़ी खाने के फायदे

खिचड़ी को प्रसाद के रूप में मकर संक्रांति के दिन खाया जाता है। खिचड़ी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होती है। खिचड़ी का सेवन करने से पाचन क्रिया सुचारू रूप से चलने लगती है। इसके साथ ही अगर मटर और अदरक को मिलाकर खिचड़ी बनाई जाए तो यह शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होती है, यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और बैक्टीरिया से लड़ने में भी मदद करता है।

मकर संक्रांति पूजा के लाभ

  • आध्यात्मिक भावनाएं शरीर की कार्य क्षमता बढ़ाती है और उसे शुद्ध करती है।
  • जिससे चेतना और बुद्धि कई स्तरों तक बढ़ जाती है, जिससे आप पूजा करते वक़्त उच्च चेतना के लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
  • इस अवधि में किए गए कार्यों के सफल परिणाम प्राप्त होते हैं।

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