जानिए छठ पूजा का महत्व, इतिहास और छठ पूजा की विधि

छठ पूजा का महत्व(Chhath Puja Ka Mahatva), भारत एक विशाल देश है जहां कई तरह से कई त्योहार मनाए जाते हैं। छठ त्योहार भारत के कई स्थानों पर मनाया जाता है, लेकिन भारत के राज्यों में से एक, छठ त्योहार का बिहार राज्य में कुछ खास स्थान है। वैसे तो बिहार में कई त्यौहार मनाए जाते हैं, लेकिन सबसे बड़ा और पवित्र छठपर्व है, जो बिहार की हमारी माताओं और भाइयों द्वारा पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाया जाता है। इस लेख के माध्यम से, पवित्र छठ की पूजा कैसे होती है जानेंगे। 

Chhath Puja Ka Mahatvaछठ पूजा का महत्व

Chhath Puja Ka Mahatva -  छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा का महत्व

इस संपूर्ण छठ की पूजा विधि को करने के लिए शुद्ध मन और दृढ़ संकल्प परम आवश्यक है। क्योंकि यह जितना पवित्र और फलदायी है, उतना ही कठिन भी है।  

छ्ठ पूजा का महत्व

शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि को की गई, छठ की पूजा का संबंध मुख्यरूप से संतान की प्राप्ति और उसके दीर्घायु होने के लिए होता है। मतलब छ्ठ पूजा के दौरान सूर्य देव और षष्ठी की पूजा से संतान और उसकी लम्बी आयु का वरदान प्राप्त होता है। 

छठ पूजा का इतिहास

किंवदंतिया 

  • रामायण 

सूर्यवंशी भगवान श्री राम जब लंका पर विजय प्राप्त करके वापस अयोध्या लौटे, तो उन्होंने अपने कुलदेवता सूर्यदेव की उपासना के लिए, देवी सीता के साथ षष्ठी तिथि पर एक व्रत रखा। और उसी दिन शाम को सरयू नदी में, डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया। फिर सप्तमी तिथि की सुबह को भगवान श्री राम ने उगते सूर्य को अर्ध्य दे के अपना व्रत पूरा किया। उसके पश्चात आम जन मानस ने भी वैसे ही सूर्यदेव की आराधना करना आरम्भ कर दिया। मान्यता है कि उसी समय से छठ पूजा का आरम्भ हुआ। 

  • महाभारत

दूसरी मान्यता के अनुसार, महाभारत काल से ही छठ पर्व की शुरुआत हुयी थी। पहले, सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा करना शुरू किया। कर्ण सूर्यदेव का अनन्य भक्त था। वह दिन में घंटों कमर तक नदी के पानी में खड़ा होकर, सूर्य को अर्ध्य दिया करता था। उसकी, भगवान सूर्य की अनन्य भक्ति का ही परिणाम था कि, वह एक महान योद्धा हुआ। आज भी, छठ में अर्ध्यदान की यही विधि अपनायी जाती है।

एक मान्यता ये भी है कि, साधु की हत्या का प्राश्चित करने के लिए जब महाराज पांडु अपनी रानियों कुंती और माद्री के साथ वनवास में दिन गुजार रहे थे। तब उन दिनों पुत्र प्राप्ति की कामना से महारानी कुंती ने सरस्वती नदी में सूर्य की आराधना की थी। जिसके परिणाम स्वरुप कुंती पुत्रवती हुई। कहते हैं इस व्रत से संतान सुख और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इसलिए संतान की प्राप्ति हेतु छठ व्रत का बड़ा महत्व है। वहीं जब पांडव अपना सारा राजपाट कौरवों से जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने भी छठ का व्रत रखा। और उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिला।

छठ का पूजा

छठपर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहले हिंदी महीने का चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी को मनाया जाता है, और दूसरा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को भव्य तरीके से मनाया जाता है। यह दीपावली के बाद मनाया जाने वाला त्योहार है, इसकी सफाई दीपावली से पहले शुरू हो जाती है। दिवाली मनाने के बाद छठपर्व की तैयारी शुरू हो जाती है। यह त्योहार (चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी) चार दिनों तक चलने वाला त्योहार है। जिसका घर कच्चा होता है, वह अपने घर को गोबर से उपचारित करता है और जिसका घर पक्का होता है, वह अपने घर को शुद्ध जल से धोता है। कच्चा घर हो या पक्का छठवर्ती अपने लिए एक मुख्य कमरा चुनता है। जिसमें वे चार दिन रहते हैं, सोते हैं और प्रसाद बनाते हैं।

छठपूजा कौन कर सकता है और इसे क्यों मनाया जाता है?

यह पूजा विवाहित पुरुष और महिला दोनों ही कर सकते हैं। जो लोग छठपूजा को करते हैं, उन्हें बिना फटे नए सूती कपड़े खरीदने चाहिए। अगर आप महिला हैं तो सूती साड़ी होनी चाहिए (खरीदने के बाद उस साड़ी में अलग सिलाई नहीं होनी चाहिए) और अगर आप पुरुष हैं तो धोती/गमछा होना चाहिए।

छठ पर्व इसलिए मनाया जाता है ताकि परिवार में सुख-शांति बनी रहे और कोई अप्रिय घटना न हो। मनोकामना पूरी होने पर भी लोग इस पर्व को खुशी से मनाते हैं। हमारे शरीर को हमेशा स्वस्थ और निरोगी रखने के लिए भी छठपर्व मनाया जाता है। इस पर्व को करने से कई लोगों के मनोवांछित कार्य पूरे हुए हैं।

पीरियड में छठ पूजा कैसे करें ?

मासिक धर्म के दौरान छठ पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि इसमें पूर्ण स्वच्छता का ध्यान रखना होता है और जैसा कि पुराणों में बताया गया है कि मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को सात दिन तक स्वच्छ नहीं माना जाता, उसके बाद ही वो पूजा पाठ कर सकती हैं। 

माहवारी के दौरान आप छठ व्रत के सभी काम कर सकती हैं, परन्तु पूजा और पूजा सामग्री के निर्माण से दूरी बनाकर रखें। यदि आपके मासिक धर्म का अभी पहला, दूसरा या तीसरा दिन है, तो आपको अर्घ्य नहीं देना चाहिए। लेकिन आपको अर्घ्य देना ही है, तो यह किसी और से करवा लेवें। 

परन्तु अगर आपके मासिक धर्म का पांचवा दिन चल रहा हो, तो आप छठ कर सकती है, क्योंकि छठी मइया की पूजा मासिक धर्म के पांचवें दिन से की जा सकती है। और अगर आपके माहवारी के 6 दिन हो चुके हो, और आपकी अर्घ्य देने की इच्छा हो, तो आप अर्घ्य भी दे सकती हैं।

आइए अब देखते हैं छठ पूजा के चार दिनों की पूजा विधि-

ध्यान दें – इस छठ पर्व में कोई भी घर में मांस, शराब, लहसुन-प्याज नहीं खाता और सेंधा नमक का प्रयोग होता है। 

– प्रथम दिन- (तिथि – चतुर्थी) नहाय खाय

चैत्र या कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के पहले दिन को ‘नहाय खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाई करें और प्रसाद चढ़ाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बर्तनों को धो लें। उसके बाद चना दाल, अरवा चावल और कद्दू का प्रसाद बनाया जाता है। परिवार के सभी सदस्य मिलकर इस प्रसाद को प्यार से स्वीकार करते हैं। फिर अगले दिन का सामान खरीद लें।

पूजा में प्रयोग होने वाली सामग्री-

१) अपने प्रसाद के अनुसार उसमें बांस की बनी एक या दो टोकरियाँ रखनी चाहिए।

२) आप अपनी इच्छा अनुसार दो, तीन, चार, पांच सूप (अर्ध्‍य चढ़ाने के लिए) ले सकते हैं, कोई भी धातु का सूप जैसे पीतल, चांदी भी ले सकते हैं.

३) जिन लोगों के लिए प्रसाद बनाया जा रहा है उनकी संख्या के अनुसार आग जलाने के लिए लगभग ५ से १५ किलो सूखे आम की लकड़ी और १० से २० गाय के गोबर का उपला का इस्तेमाल किया जाएगा।

४) गुड़ २ से ५ किलो तक आपकी आवश्यकता के अनुसार।

५) अपनी आवश्यकता के अनुसार शुद्ध गेहूँ खरीदें और इसे पीस लें या पीसवा लें। 

६) गेहूं की मात्रा से, अरवा चावल की आधी मात्रा लेकर उसे भी (लड्डू और पीठा के लिए) पीस लें।

7) लगभग 2 किलो शुद्ध गाय का घी।

8) अगरबत्ती, सलाई, सिंदूर, रोली, दीया, मिट्टी के दो छोटे बर्तन और एक बड़ी थाली।

9) बिना छिले नारियल, गन्ना, केला प्रमुख फल हैं, इसके अलावा किन्हीं दो मौसमी फल,  फलों में पांच फल होने चाहिए।

– दूसरा दिन – (तिथि – पंचमी), लोहंडा / खरना (खीर, रोटी और चावल के पिठे का प्रसाद)

१) दूध, अरवा चावल, गुड़ की सहायता से बनाई गई खीर।

२)गेहूं के आटे से बनी रोटी।

३) चावल के आटे से बना गोल-गोल पिठा।

विधि – बनाने के लिए 

१) सबसे पहले ईंट और मिट्टी से बने चूल्हे या लोहे के चूल्हे का उपयोग किया जाता है, बिल्कुल शुद्ध।

२) शुद्ध ताजा पिसा हुआ गेहूं का आटा, जिसकी रोटी बना लें।

३) चावल के आटे को गोल करके उबालिये और पिठ्ठा तैयार कर लीजिये। 

4) दूध, अरवा चावल, गुड़ की सहायता से बनाई गई खीर। (चीनी की जगह गुड़ का प्रयोग करें)

ध्यान दें – इस प्रसाद को बनाने के लिए 11 बजे से 12 बजे के बीच शुरू कर दें, क्योंकि इसमें 4 से 5 घंटे का समय लगता है। यदि छठवर्ती को प्रसाद पाते समय कुछ मिलता है (जैसे – बाल, कंकर) तो उसे प्रसाद छोड़ना पड़ता है और अगले दो दिनों तक खाने के लिए कुछ भी नहीं मिलता है। इसलिए प्रसाद को अच्छे से तैयार करें, और प्रसाद बनाते समय सिर और मुँह को ढ़क लें ताकि प्रसाद में थूक व बाल न जाये। 

प्रसाद बनने के बाद छठवर्ती सभी प्रसाद का एक छोटा सा अंश छठमाता को अर्पित करें और फूल, दीपक से उनकी पूजा करें, फिर एक भाग गौ माता के लिए निकाल लें और एक भाग अपने लिए लें और ध्यान लगाकर प्रसाद को ग्रहण करें और शेष महाप्रसाद को अपने परिवार और दोस्तों के साथ खाएं।

– तीसरा दिन – डाला छठ (तिथि – षष्ठी) की सायं अर्ध्य-

इस दिन छठवर्ती ठेकुआ/खमोनी और चावल के लड्डू तैयार करते हैं।

विधि – बनाने के लिए 

१) गेहूं के आटे, गुड़, पानी और घी की सहायता से आटा गूथ लीजिये, और हथेली से छोटे छोटे टुकड़ों में दबा कर शुद्ध घी में छान लीजिये। 

2) घी और पानी की सहायता से चावल के आटे से लड्डू बना लें।

उसके बाद सभी प्रसाद को इकट्ठा करके सूप (फल, ठेकुआ, लड्डू, अगरबत्ती, माचिस, दीया, हुमाद, सिंदूर, रोली) में डाल दें, फिर सूप को एक दउरा (टोकरी) में रख दें, और एक कपड़े से बांध दें। उसके बाद स्नान करके, पुरूषों को उसे लेकर आगे आगे चलना चाहिए, फिर पीछे से स्त्रियाँ छतवर्ती गीत गाती चले, नदी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देवें। और पूजा करके घर वापस आ जावें। सभी प्रसाद अच्छे से रख लें क्योंकि अगले दिन सप्तमी के दिन ये सभी प्रसाद फिर से ले जाने हैं।

– चौथा दिन- सुबह अर्ध्य ( तिथि – शुक्ल पक्ष सप्तमी) –

अगले दिन ३ और ४ बजे के बीच स्नान कर सभी लोग चार बजे के बाद निकल जाते हैं, और महिलाएं सूर्योदय से आधा घंटा पहले पहुंच जाती हैं। और जल में खड़े होकर उगते सूर्य की पूजा करती हैं और सारे प्रसाद का अर्ध्य देती है उसके बाद हुमाद जलाकर हुमाद देती है, और नींबू, चीनी और पानी की मदद से व्रत तोड़कर घर वापस आ जाते हैं, फिर सभी लोग चावल, दाल, आकाश के फूल को बना कर खाते और प्रसाद बांट देते है। इस प्रकार छठपर्व पूरा हुआ। छठ मैया तेरी सदा ही जय हो।

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