श्राद्ध का महत्व, श्राद्ध से तृप्त होते हैं पितर

श्राद्ध का महत्व (Shradh Ka Mahatva): श्राद्ध पक्ष अपने पूर्वजों की स्मृति का पक्ष है। इस काल में अपने पितरों के निमित्त दान आदि की परंपरा है। तर्पण  करने के लिए हमारे हिंदू महीनों में 15 दिन तय किए गए हैं इन्हीं 15 दिनों को श्राद्ध पक्ष कहते हैं। आइए जानते हैं कि इस श्राद्ध का क्या महत्व है ?

श्राद्ध का महत्व (Shradh Ka Mahatva)

श्राद्ध का महत्व
Shradh Ka Mahatva

शास्त्रानुसार प्रत्येक मानव पर जन्म से ही तीन ऋण होते हैं- देव, ऋषि और पितृ ऋण। इस ऋण से मुक्त होने के लिए ही श्राद्ध कर्म किया जाता है। श्राद्ध संस्कार से व्यक्ति पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है तथा पितर संतुष्ट होते हैं। जो लोग अपने पितरों का श्राद्ध श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनके पितर खुश होकर उन्हें दीर्घायु, संतान सुख, धन, स्वर्ण, राज्य, मोक्ष व सौभाग्य की वृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। 

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पितरों का श्राद्ध

महालय श्राद्ध 17 दिनों का होता है। अनंत चतुर्दशी से इसका आरंभ होता है, जिसमें पूर्णिमा से अमावस्या तक की तिथियां होती हैं, उनमें पितरों के श्राद्ध कर्म संपन्न किए जाते हैं। इस दिन पितरों का मनभावन भोजन, खीर, पूरी, सब्जी आदि भोजन बनाने चाहिए।

इस पक्ष में अपने दिवंगत पितरों के निमित्त जो व्यक्ति तिल, जौ, अक्षत, कुश एवं गंगाजल सहित पिंडदान व तर्पणादि करने के बाद ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन, फल, वस्त्र आदि का दान करता है, उनके पितर संतुष्ट होकर दीर्घायु, आरोग्य, स्वास्थ्य, संतान सुख, धन, यश, संपदा आदि का आशीर्वाद देते हैं। 

यदि पितर स्त्री का श्राद्ध है, तो ब्राह्मणी को भोजन कराकर साड़ी-सूट, फल दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त करें। मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में पूर्वज अपने वंशज के द्वार पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक दरवाजे पर खड़े रहते हैं और अपने वंशजों द्वारा वस्त्रादि दान करने पर ग्रहण करते हैं और आशीर्वाद देते हैं। 

ब्रह्मवैवर्त पुराणानुसार, जो सामर्थ्यवान व्यक्ति पितरों का श्राद्ध नहीं करता है, उसके पितर उसे श्राप दे देते हैं, जिस कारण वह रोगी, दुखी या वंशहीन हो जाता है। 

श्राद्ध कृष्ण पक्ष में ही क्यों ?

चूंकि हमारा एक माह चंद्रमा का एक अटोरात्र होता है। इसीलिए उर्ध्व भाग पर रह रहे पितरों के लिए कृष्ण पक्ष उत्तम रहता है। कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उनके दिनों का उदय होता है। अमावस्या उनका माध्याह्न हैं तथा शुक्ल पक्ष की अष्टमी उनका दिन होता है। 

अमावस्या को किया गया श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान उन्हें संतुष्टि व ऊर्जा प्रदान करते हैं। इसीलिए प्रत्येक अमावस्या पितृ अमावस्या कहलाती है। 

प्रिय है अश्विन मास की शीतलता 

सूर्य मेष से कन्या संक्रांति तक उत्तरायण और तुला से मीन राशि तक दक्षिणायन रहता है। इस समय शीत ऋतु का आगमन प्रारंभ होता है। राशियों की शीतलता के कारण चंद्रमा पर रहने वाले पितरों के लिए यह समय अनुकूल होता है। 

पितर अपने लिए भोजन और शीतलता की खोज में पृथ्वीलोक में भ्रमण करके अपने वंशजों द्वारा तर्पण, पिंडदान ग्रहण करते हैं और उन्हें पिंड मिलने पर आशीर्वाद देकर पुनः अपने लोग लौट जाते हैं, जो लोग इन दिनों की मान्यता को नहीं मानते, उन्हें दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियों का सामना करना पड़ता है। 

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