कुंडली के भाव और उनके स्वामी, क्या बताते हैं कुंडली के 12 भाव ?

कुंडली के भाव और उनके स्वामी (Kundli Ke Bhav Aur Unke Swami): कुंडली वाचन एक प्राचीन विधि है – इससे पैसा, शादी, बच्चे, मृत्यु हर बात मालुम हो जाती है। लेकिन सवाल ये उठता है कि कुंडली में भाव कैसे देखे? क्योंकि जब तक कुंडली के भाव की जानकारी नहीं होगी तब तक हम कैसे जानेंगे कि क्या बताते हैं कुंडली के 12 भाव? तो आईये जानते है इस लेख के माध्यम से, इन्हीं सब सवालों के जवाब –

कुंडली के भाव और उनके स्वामी (Kundli Ke Bhav Aur Unke Swami)

 कुंडली के भाव और उनके स्वामी
Kundli Ke Bhav Aur Unke Swami

क्या बताते हैं कुंडली के 12 भाव ?

यहां कुंडली के भावों की जानकारी के साथ प्रत्येक भाव के स्वामी ग्रह कौन है तथा उस भाव से जातक के किस चीज़ की गणना की जाती है। उसके बारे में बताया गया है, जिससे आपकी अपनी कुंडली के भाव क्या बताते है, उसकी जानकारी आसानी से हो जाएगी।

1. कुंडली का प्रथम भाव

कुंडली का प्रथम भाव अर्थात् लग्न को तनु कहा जाता है। इस भाव से व्यक्ति का स्वरूप, जाति, आयु, विवेक, दिमाग, सुख-दुख आदि के संबंध में विचार किया जाता है। इस भाव का स्वामी सूर्य है। 

2. द्वितीय भाव

द्वितीय भाव को धन का भाव माना जाता है। इस घर का स्वामी गुरु ग्रह है। धन भाव से हमारी आवाज, सौंदर्य, आंख, नाक, कान, प्रेम, कुल, मित्र, सुख आदि बातों पर विचार किया जाता है। 

3. तृतीय भाव

तृतीय भाव सहज भाव कहलाता है। इसका स्वामी मंगल है। इस भाव से पराक्रम, कर्म, साहस, धैर्य, शौर्य, नौकर, दमा बीमारी आदि पर विचार किया जाता है। 

4. चतुर्थ भाव

चतुर्थ भाव सुहृद भाव कहलाता है। इसका स्वामी चंद्र है। इस भाव से सुख, घर, ग्राम, मकान, संपत्ति, बाग-बगीचा, माता-पिता का सुख, पेट के रोग आदि पर विचार किया जाता है। 

5. पंचम भाव

पंचम भाव को पुत्र भाव कहा जाता है। इसका स्वामी गुरु है। इस भाव से बुद्धि, विद्या, संतान, मामा का सुख, धन मिलने का उपाय, नौकरी आदि पर विचार किया जाता है। 

6. षष्ठ भाव

षष्ठ भाव को रिपु भाव कहा जाता है। इसका स्वामी मंगल ग्रह है। इस भाव से शत्रु, चिंता, संदेह, मामा की स्थिति, यश, दर्द, बीमारियां आदि पर विचार किया जाता है। 

7. सप्तम भाव

सप्तम भाव को स्त्री या जाया भाव कहा जाता है। इस भाव से स्त्री, मृत्यु, काम की इच्छा, सहवास, विवाह, स्वास्थ्य, जननेंद्रिय, अंग विभाग, व्यवसाय, बवासीर आदि पर विचार किया जाता है। 

8. अष्टम भाव

अष्टम भाव को आयु भाव कहा जाता है। इस भाव का स्वामी शनि है। इस भाव से व्यक्ति की आयु पर विचार किया जाता है। साथ ही जीवन, मृत्यु का कारण, चिंताएं, गुप्त रोग के संबंध में विचार किया जाता है। 

9. नवम भाव

नवम भाव को धर्म कहा जाता है। इसका स्वामी गुरु है। इस भाव से धर्म-कर्म, विद्या, तप, भक्ति, तीर्थ यात्रा, दान, विचार, भाग्योदय, पिता का सुख आदि पर विचार किया जाता है। 

10. दशम भाव

दशम भाव को कर्म भाव कहा जाता है, इसका स्वामी बुध है। इस भाव से कर्म, अधिकार, नेतृत्व क्षमता, ऐश्वर्य, यश, मान-सम्मान, नौकरी आदि पर विचार किया जाता है। 

11. एकादश भाव

एकादश भाव को लाभ भाव कहा जाता है। इसका स्वामी गुरु ग्रह है। इसके द्वारा संपत्ति, ऐश्वर्य, मांगलिक कार्य, वाहन आदि पर विचार किया जाता है। 

12. द्वादश भाव

द्वादश भाव को व्यय भाव कहा जाता है। इसका स्वामी शनि है। इससे दंड, व्यय, हानि, रोग, दान, बाहरी संबंध आदि पर विचार किया जाता है। 

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