जीवित्पुत्रिका व्रत, जानिए जितिया का महत्व और जिउतिया व्रत की कथा
जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat): व्रत कथा और महत्वपूर्ण बातें – आज के दिन माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। 3 दिनों तक चलने वाले इस व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) और जिउतिया व्रत कथा
![जीवित्पुत्रिका व्रत](https://www.mandnam.com/wp-content/uploads/2021/09/jivitputrika-vrat.jpg)
जीवित्पुत्रिका व्रत क्या है ?
हिंदू धर्म में कई त्योहार बहुत धूमधाम से मनाए जाते हैं, इन्हीं त्योहारों में से एक है जिउतिया त्योहार। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को प्रतिवर्ष पंचांग के अनुरूप जितिया व्रत मनाया जाता है। प्रतिवर्ष विवाहित महिलाएं इस व्रत को रखती हैं और अपने बच्चों के कल्याण के लिए प्रार्थना करती हैं। ऐसा माना जाता है कि जितिया व्रत का पालन करने से बच्चे की आयु लंबी होती है। इस व्रत को जीवित्पुत्रिका, जिउतिया और जितिया व्रत भी कहा जाता है।
कठिन व्रत की महत्वपूर्ण बातें
3 दिनों तक चलने वाले इस व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। आज के दिन माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र की कामना के साथ निर्जला व्रत रखती हैं। सप्तमी तिथि को स्नान, अष्टमी को जितिया व्रत और नवमी को व्रत तोड़ा जाता है अर्थात पारण होता है। स्नान के दिन व्रत रखने वाले लोग सूर्यास्त के बाद कुछ भी नहीं खाते हैं और घर में प्याज-लहसुन नहीं बनता है।
जितिया का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत का महत्व महाभारत काल से जुड़ा है। ऐसा कहा जाता है कि उत्तरा के गर्भ के पांडव पुत्र की रक्षा के लिए, श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्य कर्मों से उसे पुनर्जीवित किया। तभी से महिलाएं आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को निर्जला व्रत रखती हैं। कहा जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से भगवान कृष्ण व्रत करने वाली महिलाओं के बच्चों की रक्षा करते हैं।
जिउतिया व्रत की कथा
धार्मिक कथाओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि एक विशाल पाकड़ के पेड़ पर एक चील रहती थी। उसके पास पेड़ के नीचे एक सियारिन भी रहती थी। दोनों घनिष्ठ मित्र थे, कुछ महिलाओं को देखकर उन्होंने जितिया व्रत का संकल्प लिया और भगवान श्री जीऊतवाहन की पूजा करने और व्रत का पालन करने का संकल्प लिया।
लेकिन जिस दिन उन दोनों को उपवास करना था, उस दिन शहर के एक बड़े व्यापारी की मृत्यु हो गई और सियारिन को उसके दाह संस्कार में भूख लगने लगी। मरे हुओं को देखकर वह अपने आप को रोक नहीं पाई और उनका उपवास भंग हो गया। लेकिन चील ने संयम रखा और अगले दिन नियम और श्रद्धा के साथ व्रत तोड़ा।
अगले जन्म में दोनों मित्रों ने एक ब्राह्मण परिवार में पुत्रियों के रूप में जन्म लिया। उनके पिता का नाम भास्कर था। चील बड़ी बहन बन गई और सियारन छोटी बहन बनके पैदा हुई। चील का नाम शीलवती रखा गया, शीलवती का विवाह बुद्धिसेन से हुआ। जबकि सियारिन का नाम कपूरावती था और उसका विवाह उस शहर के राजा मलाइकेतु से हुआ था।
भगवान जीऊतवाहन के आशीर्वाद से, शीलवती के सात पुत्र हुए। लेकिन कपूरावती के सभी पुत्र पैदा होते ही मर गए। कुछ समय बाद शीलवती के सात पुत्र बड़े हो गए और उनमें से प्रत्येक राजा के दरबार में काम करने लगा। उन्हें देखकर कपूरावती को ईर्ष्या का भाव हुआ, उसने राजा से सभी पुत्रों के सिर काटने के लिए कहा।
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सात नए बर्तन में सातो सिर रखे और उन्हें लाल कपड़े से ढँककर शीलवती को भेज दिया। यह देखकर भगवान जीऊतवाहन ने सात भाइयों के सिर मिट्टी से बनाए और उन सभी के सिर को उनके धड़ से जोड़कर उन पर अमृत छिड़का। इससे उनमें जान आ गई।
सात युवक जीवित होकर घर लौट आए, रानी ने जो कटे हुए सिर भेजे थे, वे फल बन गए। दूसरी ओर रानी कपूरावती बुद्धिसेन के घर से सूचना पाने को आतुर थी। ज्यादा देर तक जानकारी नहीं हुई तो कपूरावती खुद बड़ी बहन के घर गई। वहां सभी को जिंदा देख वह होश खो बैठी, जब उसे होश आया तो उसने अपनी बड़ी बहन को सारी बात बताई। अब वह अपनी गलती पर पछता रही थी।
भगवान जीऊतवाहन की कृपा से शीलवती को अपने पिछले जन्म की बातें याद आ गईं। वह कपूरावती को उसी पेड़ के पास ले गई और उसे सारी बातें बताईं। कपूरावती बेहोश हो गई और मर गई, जब राजा को इस बात का पता चला, तो उन्होंने उसी पाकड़ के पेड़ के नीचे कपूरावती का अंतिम संस्कार किया।
Ans. जीवित्पुत्रिका व्रत रविवार, 18 सितंबर 2022 को है।
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