स्वास्तिक का महत्व, घर में स्वास्तिक बनाएं वास्तु दोष मिटाएं

स्वास्तिक का महत्व (Swastik Ka Mahatva): स्वास्तिक चिह्न को धर्म का प्रतीक माना गया है। जो देवताओं की शक्ति और मनुष्य की मंगलमय कामनाएं, इन दोनों के संयुक्त सामर्थ्य का प्रतीक भी है। लेकिन कैसे ? 

स्वास्तिक का महत्व (Swastik Ka Mahatva)

स्वास्तिक का महत्व
Swastik Ka Mahatva

भारतीय नारी की मंगलमय भावना का मूर्तिमंत प्रतीक का रूप है स्वास्तिक । स्वास्तिक शब्द मूलभूत ‘सु’ और ‘अस’ धातु से बना हुआ है। ‘सु’ का अर्थ है अच्छा, कल्याणकारी, मंगलमय और ‘अस’ का अर्थ है, अस्तित्व, सत्ता अर्थात कल्याण की सत्ता । किसी भी मंगलकार्य के प्रारंभ में स्वास्तिमंत्र बोलकर कार्य की शुभ शुरुआत की जाती है। 

स्वास्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पृथा विश्ववेदाः। 
स्वास्ति नस्ताक्ष्यों अरिष्टनेमिः स्वास्ति नो वृहस्पतिर्दधातु॥

इस आकृति को ऋषि मुनियों ने हजारों वर्ष पूर्व निर्मित की थी। स्वास्तिक की रेखा ज्योतिर्लिंग की सूचना देती है और आड़ी रेखा विश्व का विस्तार बताती है। स्वास्तिक की चार भुजाएं यानी भगवान श्री विष्णु अपने चार हाथों से दिशाओं का पालन करते हैं।

सौभाग्य का प्रतीक स्वास्तिक

स्वास्तिक की आकृति सर्वांगी मंगलमय भावना का प्रतीक है। प्रयोगों के जरिए सिद्ध हुआ है कि ‘ऊं’ और ‘स्वास्तिक’ को देखने से जीवन शक्ति का विकास होता है। इसलिए पूजाघर में स्वास्तिक अवश्य बनाएं। शयनकक्ष में पलंग के नीचे जमीन पर स्वास्तिक बना सकते हैं। स्वास्तिक की रेखाएं व्यक्ति या घर में उपस्थित ऋणात्मक ऊर्जा को ग्रहण करके उसे धनात्मक ऊर्जा में परिवर्तित कर देती हैं। 

भारतीय संस्कृति की परंपरा के अनुसार विवाह-प्रसंगों, नवजात शिशु की छट्ठी के दिन, दीपावली के दिन, पुस्तक पूजन में, गृह प्रवेश में, मंदिरों के प्रवेश द्वार पर, अच्छे शुभ अवसरों पर, स्वास्तिक का चिन्ह कुमकुम या रोली से बनाने का विधान है। इस अवसर पर भावपूर्वक ईश्वर की पूजा की जाती है और मंगलकामना करते हुए कहा जाता है- हे प्रभू मेरा कार्य निर्विघ्न संपन्न हो। हमारे घर में जो अन्न, वस्त्र वैभव आए उसे आप पवित्र करें। इस तरह विभिन्न शुभ कार्यों को आरंभ करने के पहले स्वास्तिक बनाया जाता है। ताकि कार्य की सफलता में कोई शक न रहे। 

स्वास्तिक शुभ क्यों?

स्वास्तिक को सतिया नाम से भी जाना जाता है। इसे सुदर्शन नाम से भी जाना जाता है। यह धनात्मक चिह्न को भी इंगित करता है, जो संपन्नता का प्रतीक है। स्वास्तिक के चारों ओर लगाए गए चार बिंदु चार दिशाओं के प्रतीक हैं। गणेश पुराण में इसे भगवान गणेश का स्वरूप माना गया है।

प्राचीन ग्रंथों के मुताबिक मंगल कार्यों में इसकी स्थापना अनिवार्य है। इसकी चार भुजाएं चार युग, चार वर्ण, चार पुरुषार्थ, चार वेद, ब्रह्मा के चार मुख, और चार हाथों का प्रतीक हैं। ऋग्वेद की एक ऋचा में इसे सूर्य का प्रतीक बताया गया है। आचार्य याक्ष ने इसे अविनाशी ब्रह्म की संज्ञा भी दी है। 

निम्न विधि से निर्मित स्वास्तिक शुभ है 

इस विधि से निर्मित स्वास्तिक 27 नक्षत्रों की ऊर्जा को ग्रहण करता है। इसके लिए गोमूत्र, गंगाजल, इत्र, कुमकुम, हल्दी इन पांच सामग्रियों से मिश्रण बनाएं। फिर इससे स्वास्तिक बनाएं। स्वास्तिक बनाते समय पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर रेखाएं अंकित करके धन का चिह्न बनाएं। फिर उसे स्वास्तिक का आकार दें।

ध्यान रहे कि उलटा स्वास्तिक विपरीत प्रभाव देता है। स्वास्तिक की प्रत्येक भुजाओं के बीच और धन के चिह्न के बीच बिंदी लगाएं और उस पर आसन बिछाकर बैठें। मन की शांति और ध्यान के लिए इस विधि का प्रयोग करें। इससे घर में सुख-शांति आती है। वास्तु दोष को दूर करने में स्वास्तिक फलदायी है। शुभ फल के लिए इसे घर के दरवाजे पर बनाएं।

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अस्वीकरण – इस लेख में दी गई जानकारियों पर Mandnam.com यह दावा नहीं करता कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले, कृपया संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।

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