शिवलिंग की पूजा, किस शिवलिंग के पूजन से मिलता है फल? 

शिवलिंग की पूजा (Shivling Ki Pooja): यूं तो भगवान शिव के पूजन की अनेकानेक विधियां हैं, जो हर रूप में पूर्ण हैं, किंतु आप अपनी इच्छानुसार किसी भी विधि से पूजन या साधना कर सकते हैं। भगवान शिव का पूजन मूर्ति और लिंग दोनों ही रूपों में होता है और दोनों ही रूप पूर्ण फलदायी है। आइए जानें शिवलिंग से जुड़ी कुछ और बातें –

शिवलिंग की पूजा (Shivling Ki Pooja)

शिवलिंग की पूजा
Shivling Ki Pooja – शिवलिंग पर अभिषेक या धारा के साथ साथ बेलपत्र चढ़ाने का भी विशेष महत्व है। बेलपत्र तीन-तीन के समूह में लगते हैं। इन्हें एक साथ ही चढ़ाया जाता है।

विभिन्न धातुओं से बने शिवलिंग का प्रभाव

शिवलिंग के निर्माण के लिए स्वर्णादि विविध धातुओं, मणियों, रत्नों तथा पत्थरों से लेकर मिट्टी तक का प्रयोग होता है। इसके बारे में कहा गया है –

मृदः कोटि गुणं स्वर्णम, स्वर्णात्कोटि गुणं मणिः, मणेः कोटि गुणं बाणो।
बाणात्कोटि गुणं रसः रसात्परतरं लिंग न भूतो न भविष्यति ॥

अर्थात मिट्टी से बने शिवलिंग से करोड़ गुणा ज्यादा फल सोने से बने शिवलिंग के पूजन से, स्वर्ण से करोड़ गुणा ज्यादा फल मणि से बने शिवलिंग के पूजन से, मणि से करोड़ गुणा ज्यादा फल बाणलिंग से तथा बाणलिंग से करोड़ गुणा ज्यादां फल रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है।

यदि आपके पास शिवलिंग न हो तो अपने बांये हाथ के अंगूठे को शिवलिंग मानकर भी पूजन कर सकते हैं। शिवलिंग कोई भी हो जव तक भक्त की भावना का संयोजन नहीं होता तब तक शिवकृपा नहीं मिल सकती।

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शिवलिंग पर अभिषेक का महत्व

भगवान शिव को पूजते हुए अभिषेक करने की परंपरा है। यहां अभिषेक का शाब्दिक तात्पर्य होता है श्रृंगार करना। इससे प्रसन्न होकर वे अपने भक्तों का हित करते हैं इसलिए शिवलिंग पर विविध पदार्थों का अभिषेक किया जाता है।

शिव पूजन में सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति शिवलिंग पर जल या दूध चढ़ाता है। क्योंकि जल तथा दूध की धारा भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। पंचामृत से या फिर गंगा जल से भगवान शिव को धारा का अर्पण किया जाना चाहिए। अगर ये दोनों उपलब्ध न हो तो गाय के दूध को कूंए के जल के साथ मिश्रित कर के शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए। 

विविध कार्यों के लिए विविध सामग्रियों या द्रव्यों की धाराओं का शिवलिंग पर अर्पण किया जाता है। पुराणों में इन धाराओं से संबंधित निम्न तर्क दिए गए हैं। अर्थात किसी कामना की पूर्ति की इच्छा के साथ पूजन के लिए विशेष सामग्रियों का उपयोग करने का प्रावधान रखा गया है।

सहस्त्रधाराः जल की सहस्रधारा सर्वसुख प्रदायक होती है।

घीः घी की सहस्रधारा से वंश का विस्तार होता है।

दूध: दूध की सहस्रधारा गृहकलह की शांति के लिए देना चाहिए। जबकि दूध में शक्कर मिलाकर सहस्रधारा देने से बुद्धि का विकास होता है।

गंगाजल: गंगाजल की सहस्रधारा को पुत्रप्रदायक माना गया है। 

सरसों के तेल की सहस्रधारा से शत्रु का विनाश होता है। इनके अतिरिक्त सुगंधित द्रव्यों यथा इत्र, सुगंधित तेल की सहस्रधारा से विविध भोगों की प्राप्ति होती है। 

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यद्यपि इसके अलावा कई अन्य पदार्थ भी शिवलिंग पर चढ़ाए जाते हैं, जो इस प्रकार हैं –

एक हजार कनेर के पुष्प चढ़ाने से रोगमुक्ति होती है। 

एक हजार धतूरे के पुष्प चढ़ाने को पुत्र प्रदायक माना गया है। 

वहीं  एक हजार आक या मदार के पुष्प चढाने से प्रताप या प्रसिद्धि बढ़ती है। 

एक हजार चमेली के पुष्प चढ़ाने से वाहन सुख की प्राप्ति होती है। 

एक हजार अलसी के पुष्प चढ़ाने से विष्णुभक्ति व विष्णुकृपा प्राप्त होती है। 

वहीं एक हजार जूही के पुष्प चढ़ाने से समृद्धि प्राप्त होती है। 

अगर आप एक हजार सरसों के फूल शिवलिंग पर चढ़ाते हैं तो शत्रु की पराजय होती है। 

संपत्ति के लिए एक लाख बेलपत्र चढ़ावें। 

लक्ष्मी के लिए भगवान शिव पर एक लाख कमलपुष्प चढ़ाएं इससे शीघ्र ही लाभ मिलता है। 

एक लाख आक या मदार के पत्ते चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। 

एक लाख अक्षत या बिना टूटे चावल चढ़ाने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है। 

वहीं एक लाख उडद के दाने चढ़ाने से स्वास्थ्य लाभ होता है। 

एक लाख दूब चढ़ाने से आयुवृद्धि होती है। 

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बेलपत्र है सबसे प्रिय 

शिवलिंग पर अभिषेक या धारा के साथ साथ बेलपत्र चढ़ाने का भी विशेष महत्व है। बेलपत्र तीन-तीन के समूह में लगते हैं। इन्हें एक साथ ही चढ़ाया जाता है। अच्छे पत्तों के अभाव में टूटे फूटे पत्र भी ग्रहण योग्य माने गए हैं। इन्हें उलटकर अर्थात चिकने भाग को लिंग की ओर रखकर चढ़ाया जाता है।

शिवपूजन में निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए

स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर ही पूजन कार्य करें। माता पार्वती का पूजन अनिवार्य रुप से करना चाहिए अन्यथा पूजन अधूरा रह जाएगा। अगर रुद्राक्ष की माला हो तो पूजा के समय अवश्य धारण करें। भस्म से तीन आडी लकीरों वाला तिलक लगाकर बैठें। शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ प्रसाद ग्रहण नहीं किया जाता, सामने रखा गया प्रसाद अवश्य ले सकते हैं। शिवमंदिर की आधी परिक्रमा ही की जाती है। केवड़ा तथा चंपा के फूल न चढ़ाएं। पूजन काल में सात्विक आहार विचार तथा व्यवहार रखें।

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