शयनकक्ष का वास्तु, पश्चिमी में रखें बच्चों का कमरा

शयनकक्ष का वास्तु (Shayan Kaksh Ka Vastu): वास्तु शास्त्र के अनुसार ईशान में पूजा स्थल, पूर्व व आग्नेय में रसोईघर, पश्चिम में भोजन कक्ष, वायव्य में भंडार गृह अथवा स्टोर, दक्षिण और नैऋर्त्य के मध्य शौचालय, विश्राम गृह, दक्षिण में शयन-कक्ष, पूर्व एवं ईशान के मध्य स्वागत एवं सार्वजनिक कक्षों का निर्माण करना चाहिए- सोने के कमरे का वास्तु, जाने बेडरूम किस दिशा में होना चाहिए?

(Shayan Kaksh Ka Vastu) शयनकक्ष का वास्तु

शयनकक्ष का वास्तु
Shayan Kaksh Ka Vastu

सोने के कमरे का वास्तु

  • बेडरूम कई प्रकार के होते हैं। एक कमरा होता है – गृहस्वामी के सोने का, एक कमरा होता है परिवार के दूसरे सदस्यों के सोने का। 
  • लेकिन जिस कमरे में गृहस्वामी सोता है, वह मुख्य कक्ष होता है। इसमें पश्चिम का शयनकक्ष बच्चों के लिए बहुत अच्छा होता है। पूर्वी दिशा में स्थित शयनकक्ष भी अविवाहित बच्चों अथवा मेहमानों के लिए बनाया जा सकता है। 
  • यदि शयनकक्ष मुख्य भवन की दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित हो तो पति पत्नी के बीच अनावश्यक झगड़े होते रहते हैं। व्यर्थ के खर्चे बढ़ते हैं और अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। यहां कार्यालय या अविवाहित संतान के लिए शयन कक्ष बनवाया जा सकता है। 
  • गृह स्वामी का मुख्य कक्ष; शयन कक्ष, भवन में दक्षिण या पश्चिम दिशा में स्थित हो। सोते समय गृह स्वामी का सिर दक्षिण में और पैर उत्तर दिशा की होनी चाहिए। यदि सिरहाना दक्षिण दिशा में रखना संभव न हो, तो पश्चिम दिशा में रखा जा सकता है। 
  • उत्तर-पूर्व देवी-देवताओं की दिशा होती है। अतः इस दिशा में शयनकक्ष नहीं होना चाहिए। अन्यथा अनेक प्राकृतिक आपदाओं, बीमारियों आदि का सामना करना पड़ता है। 

पति-पत्नी को किस दिशा में सोना चाहिए

  • यदि नवविवाहित जोड़ा उत्तर-पूर्व के कक्ष में सोते हो, तो उन्हें अनेक लंबी बीमारियों का सामना करना पड़ता है। शयन कक्ष का चुनाव करते समय इस बात का ध्यान रखें। 
  • यदि शयन कक्ष उत्तर में है, तो आप पूर्व अथवा दक्षिण की ओर सिर करके सोएं। आपको गहरी और मीठी नींद आएगी। भवन के बीचों बीच किसी का भी शयनकक्ष नहीं होना चाहिए। दीवारों का रंग गुलाबी, भूरा, नीला, चॉकलेटी व हरा इत्यादि होना चाहिए। 
  • कमरे में दक्षिण-पश्चिम कोने में भारी समान रखना चाहिए। इस कक्ष में पलंग दक्षिण में अथवा दक्षिण-पश्चिम कोने के पश्चिम की ओर रखना चाहिए। 
  • शयनकक्ष में शृंगार मेज पूर्व की उत्तर दिशा में होनी चाहिए। पढ़ने लिखने का कार्य पश्चिम में, उत्तर की ओर मुंह रखकर करना चाहिए। यह कार्य पूर्व में भी किया जा सकता है। पढ़ते या अध्ययन करते समय चेहरा पूर्व की ओर होना चाहिए। इससे का एकाग्रता बढ़ती है। 

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  • जहां तक संभव हो, शयनकक्ष का द्वार एक पल्ले वाला होना चाहिए। यह पूर्व, पश्चिम अथवा उत्तर में होना चाहिए। उत्तर और पूर्व में छोटी लड़कियां रखने में कोई हानि नहीं है। लेकिन, अलमारी, शोकेस आदि कमरे के दक्षिण अथवा पश्चिम दीवारों में होनी चाहिए। इस तरफ छज्जा लगाया जा सकता है। 
  • यदि स्नानघर, नहाने का टब, कपड़े बदलने का कक्ष आदि शयनकक्ष के आसन्न हो तो वे पश्चिम अथवा उत्तर की ओर होने चाहिए। 
  • तिजोरी शयन कक्ष में नहीं रखना चाहिए। यदि रखें तो दक्षिण-पूर्व, उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम कोनो के साथ ही रखें, लेकिन पूर्व और उत्तर दिशाओं में नहीं रखें। 
  • यदि दक्षिण में रखी तिज़ोरी उत्तर की तरफ खुलती हो तो यह बहुत ही शुभ होती है। लेकिन तिजोरी उत्तर की ओर किसी भी कक्ष में नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि यह दक्षिण की ओर खुलती है, जो अनावश्यक खर्च और धन-हानि बढ़ाती है। 
  • अपने शयनकक्ष को नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से बचाने के लिए इसके बाहरी द्वार पर बा-गुआ दर्पण लगाएं। 
  • इस तरह सुखमय जीवन के लिए शयनकक्ष की दिशाओं और उनकी साज-सज्जा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। 

सोते समय सिर किस दिशा में होना चाहिए

  • पूर्व की ओर पांव करके सोने से नाम, प्रसिद्धि और संपन्नता प्राप्त होती है। पश्चिम की ओर पैर करके सोने से मानसिक शांति और अध्यात्म की प्रवृत्ति विकसित होती है। 
  • उत्तर की ओर पैर करके सोने से धन-संपत्ति बढ़ती है। यद्यपि दक्षिण की ओर पैर करके सोने से अच्छी और गहरी नींद आती है। पर दिमाग में बुरे विचारों और सपनों की फसल लहराने लगती है। क्योंकि दक्षिण को यम स्थान कहा गया है। 
  • मृत व्यक्तियों के पैरों को दक्षिण की ओर करके रखा जाता है। ऐसे शयन से मानसिक रुग्णता बढ़ती है और आयु में भी कमी संभव होती है। 
  • ईशान कोण में पूर्व दिशा में पूजा स्थल के साथ अध्ययन कक्ष शामिल करें, अत्यंत प्रभावकारी सिद्ध होगा। यहां आपकी बुद्धि का विकास होता है। मस्तिष्क पर अनावश्यक दबाव नहीं रहता। 
  • स्टडी रूम आनी अध्ययन कक्ष वास्तु शास्त्र के अनुसार वायव्य, नैऋर्त्य कोण और पश्चिम दिशा के मध्य में होना उत्तम माना गया है। 

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अस्वीकरण – लेख में उल्लिखित सलाह और सुझाव केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य के लिए हैं। Mandnam.com इसकी पुष्टि नहीं करता है। इसका इस्तेमाल करने से पहले, कृपया संबंधित विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।

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