मन की भावना, कितनी निष्ठुर और कितनी निर्दयी

मन की भावना (Mann Ki Bhavna): आपने बहुत से कवियों को सुना होगा, बहुत सी रचनाएं भी पढ़ी होंगी, लेकिन आज हम आपके सामने मनोज अनुश्री की कुछ रचनायें प्रस्तुत कर रहे है, पढ़े और विश्लेषण करें, कि कितना दिल को छू के गुजरने वाले शब्द चुने है उन्होंने –

मन की भावना (Mann Ki Bhavna)

मन की भावना
Mann Ki Bhavna

मन की भावना कितनी निष्ठुर होती है, जब मनुष्य पर हावी होती है तो उसे कही का नहीं छोड़ती है। तो कवि ने इस रचना में बहुत ही खुबसुरत ठंग से भावना को भावना के उसी के अंदर होने का बहुत ही अच्छे से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है –

भावना ! अगर तुझमें भी होती भावना 

तो वो किस तरह की होती 

किस तरह दर्द दे जाती है ! भावना

और किस तरह रुला जाती है, भावना 

तू भी इसी तरह रोती 

औरो को तो ना रुलाती, भावना 

अरे! एहसास कर की तू भी 

किसी चाहत की चाह में है 

और वो ना मिले तो 

ये दर्द क्या सह पाओगी भावना ? 

भावनात्मक रिश्तों में दर्द है कितना

टूटे या बने जान तो जाती, भावना

औरों को तो ना रुलाती, भावना

सौजन्य से – मनोज अनुश्री

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