ग्रहण काल में साधना, सिद्धि पर्व ‘ग्रहण’ आपकी हर मनोकामना करेगा पूर्ण 

ग्रहण काल में साधना (Grahan Kaal Mein Sadhana): ग्रहण काल वह समय है, जब वातावरण स्वयं सिद्धिमय हो जाता है और बिना किसी कठिनाई के हर कार्य सिद्ध हो जाता है। आपकी हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। ऐसे समय, सिद्धियां प्राप्त होती हैं। कई तंत्र शास्त्रों में और पुराणों में ग्रहण का समय मंत्र-दीक्षा लेने के लिए सर्वोत्तम समय बताया गया है। सिद्धि प्राप्त करने के लिए ग्रहण की तरह उचित समय दूसरा कोई नहीं हो सकता…

ग्रहण काल में साधना (Grahan Kaal Mein Sadhana)

ग्रहण काल में साधना
धर्मसिंधु में कहा गया है कि ग्रहण लगने पर स्नान, ग्रहण के मध्य काल में हवन, देव पूजन और श्राद्ध करना चाहिए।

साधना के लिए ग्रहण का विशेष महत्व है। शास्त्रों के मुताबिक, यदि कोई साधना अत्यंत कठिन हो और संपन्न नहीं हो रही हो, तो इस समय वह फलीभूत हो जाती है। पितृ दोष, पूर्व जन्म दोष या जिस कारण साधना में सिद्धि नहीं मिल रही हो, तब उसके लिए ग्रहण का समय सर्वोत्तम होता है। 

कहते हैं कि साधारण समय में किया गया एक लाख मंत्र जप, ग्रहण के समय किए गए कुछ जप के बराबर होता है। इस तरह कोई भी साधना यदि ग्रहण काल में संपन्न की जाए, तो उसका कई गुना फल प्राप्त होता है, जिससे उसकी सफलता निश्चित होती है। 

ऐसी अनेको साधनाएं और प्रयोग है, जिन्हें ग्रहण काल में पूर्ण कर इच्छानुरूप वरदान पाया जा सकता है। अनेको समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। धर्म शास्त्रों तथा पुराणों का कथन है कि ग्रहण काल मे जप, दान और हवन करने से अधिक फल प्राप्त होता है। 

धर्मसिंधु में कहा गया है कि ग्रहण लगने पर स्नान, ग्रहण के मध्य काल में हवन, देव पूजन और श्राद्ध करना चाहिए। ग्रहण जब समाप्त होने वाला हो, तब दान और समाप्त होने पर पुनः स्नान करना चाहिए। 

यदि सूर्यग्रहण रविवार को हो और चंद्रग्रहण सोमवार को हो, तो उसे चूड़ामणि कहते हैं। उस ग्रहण में स्नान, जप दान हवन करने का और भी विशेष महत्व है।

क्या कहता है तंत्र शास्त्र

तंत्र शास्त्र में भी ग्रहण का बहुत अधिक महत्व है। ग्रहण काल ही ऐसा शुद्ध और सिद्ध समय होता है जब कोई भी तंत्र क्रिया की जाए तो शीघ्र सफल होती है। जिन तांत्रिक कर्मों को करने में वर्षों का समय लग जाता है, उन्हें ग्रहण काल में अल्प समय में सिद्ध किया जा सकता है।

यही कारण है कि आज भी अनकों तांत्रिक, अघोरी, औघड़ आदि सिद्धियां प्राप्त करने ग्रहण काल से काफी पहले जंगलों गुफाओं एवं पहाड़ों पर चले जाते हैं। ये वैसे तांत्रिक और अघोड़ी होते हैं जो लंबे समय से सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयत्न कर रहे होते हैं।

ध्यान रखें 

चंद्र ग्रहण हो या सूर्य ग्रहण, ग्रहण के समय कुछ कार्य और सावधानियां हमारे शास्त्रों में, हमारे लाभ के लिए बताई गई हैं – 

कोई भी व्यक्ति ग्रहण को नंगी आंखों से न देखें। वृद्ध, रोगी, अशक्त व्यक्तियों को छोड़कर अन्य कोई व्यक्ति ग्रहण के समय भोजन तथा शयन नहीं करें। 

गर्भवती स्त्रियों को आने वाले संतान की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखना चाहिए। उन्हें घर से बाहर नहीं आना चाहिए, इससे संतान उदास और मानसिक रूप से परेशान रहेगी तथा जीवन में कष्ट और उतार-चढ़ाव रहेंगे।

ग्रहण समाप्त होने के बाद नदी तालाब या सरोवर जाकर या फिर घर पर ही गंगा जल या नर्मदा का जल पीएं और स्नान करें। इससे आप ग्रहण के कुप्रभाव से बच जाएंगे तथा शरीर के रोगों पर नियंत्रण होगा। मन निश्छल एवं निर्मल होगा। 

ग्रहण काल की प्रतीक्षा ज्योतिषी, पंडित ही नहीं, बल्कि तंत्र साधना करने वाले अघोरी एवं साधु भी व्याकुलता से करते हैं। तंत्रशास्त्र में इस काल का बहुत महत्व है। दरअसल जिन तांत्रिक कर्मों को करते हुए काफी समय बीत चुका होता है, उसे ग्रहण काल की अल्प अवधि में सिद्ध होते हुए भी देखा गया है। इस काल में तंत्र साधकों की वर्षों की साधना फलीभूत होती है। यही नहीं ग्रहण काल में किया गया साधारण जप-तप भी अन्य समय से ज्यादा प्रभावकारी सिद्ध होता है।

यह सिद्धियों को प्राप्त करने का भी समय है। इसलिए इस अवसर की प्रतीक्षा की जाती है। साथ ही मंत्र दीक्षा के लिए यह समय उपयुक्त माना जाता है। कई साधु एवं तंत्र साधक इस काल में अपनी सिद्धि को फलीभूत करने के लिए एकांत स्थान में चले जाते हैं।

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ग्रहण काल में धारण करें रुद्राक्ष

ग्रहणे विषुचे चैवमनये संक्रमेडपि वा ।
दर्शेषु पूर्णमासे च पूर्णेषु दिवसेषु च। रुद्राक्ष धारणात् सद्यः सर्वपापैविमुच्यते ॥ 

अर्थात् ग्रहण काल में मेष या तुला के सूर्य में कर्क या मकर संक्रांति के दिन अमावस्या पूर्णिमा एवं पूर्णा तिथियों को रुद्राक्ष धारण करने से संपूर्ण पापों से निवृत्त होकर मनुष्य पुण्य का भागी बनता है। यदि आप लंबे समय से एकमुखी रुद्राक्ष धारण करने की सोच रहें हैं, तो ग्रहण इसके लिए सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है। 

रुद्राक्ष की तांत्रिक वस्तुओं की यंत्रों की प्राण प्रतिष्ठा की विधि एक अत्यंत जटिल विद्या है, जो एक गुरु अपने श्रेष्ठ शिष्यों को देकर जाता है। यही कारण है, कि आज समाज में कई व्यक्ति ऐसे मिल जाएंगे, जो बेहिचक कह देंगे कि रुद्राक्ष धारण करने से उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ। 

पर इसके कारण की ओर देखें, तो मूल में प्राण-प्रतिष्ठा के लिए उचित प्रक्रिया का इस्तेमाल नहीं किया जाना नजर आता है। वैदिक धर्मों के नियमानुसार यदि आपके पास एकमुखी रुद्राक्ष भी है और आपने बगैर प्राण-प्रतिष्ठा के उसे धारण कर लिया है, तो वह बेकार हो सकता है। यानी उसका कोई सुफल नहीं मिलेगा। उसे अपवित्र माना जाएगा। 

रुद्राक्ष स्वयं भगवान शिव का प्रिय आभूषण, दीर्घायु प्रदान करने वाला और अकाल, मृत्य को दूर धकेलने वाला माना जाता है। धार्मिक ही नहीं, बल्कि आयुर्वेदिक, भौतिक और साधनात्मक कई दृष्टियों से यह प्रकृति की अनमोल देन है।

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अस्वीकरण – लेख में उल्लिखित सलाह और सुझाव केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य के लिए हैं। Mandnam.com इसकी पुष्टि नहीं करता है। इसका इस्तेमाल करने से पहले, कृपया संबंधित विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।

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