ये हैं नवरात्र की 9 देवियां, इनसे सीखिए जीवन प्रबंधन के सूत्र

ये हैं नवरात्र की 9 देवियां (Yeh Hai Navratri Ki 9 Deviyan): प्रत्येक व्यक्ति में कोई-न-कोई विशेष गुण अवश्य होता है, इसलिए अपने जीवन का कोई भी लक्ष्य तय करने से पहले सभी को अपने भीतर छुपे इस विशेष गुण की पहचान करके ही आगे बढ़ना चाहिए। पर कभी कभी कोई मार्ग दर्शन न मिलने से भटकाव अवसंभावी है। तो आईये नवरात्री की नव देवियों से जीवन-प्रबंधन को जानने की कोशिश करते है क्योंकि जीवन-प्रबंधन में कर्म एक महत्त्वपूर्ण कारक है।

ये हैं नवरात्र की 9 देवियां (Yeh Hai Navratri Ki 9 Deviyan)

ये हैं नवरात्र की 9 देवियां
Yeh Hai Navratri Ki 9 Deviyan

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ये हैं नवरात्र की 9 देवियां, इनसे सीखिए जीवन प्रबंधन के सूत्र

1. मां शैलपुत्री को समर्पित है पहला दिन

नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार देवी का यह नाम हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा। हिमालय हमारी शक्ति, दृढ़ता, आधार व स्थिरता का प्रतीक है। मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। हिमालय की पुत्री होने से देवी शैलपुत्री को प्रकृति स्वरूपा माना गया है यानी यह पूरी प्रकृति ही देवी का स्वरूप है। स्त्रियों के लिए इनकी पूजा करना श्रेष्ठ और मंगलकारी है। नवरात्रि के प्रथम दिन योगीजन अपनी शक्ति मूलाधार में स्थित करते हैं व योग साधना करते हैं।

जीवन प्रबंधन

देवी शैलपुत्री प्रकृति का स्वरूप है। ये हमें बताती है कि प्रकृति के नियम मनुष्य की भलाई के लिए हैं। इसलिए अपनी निजी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रकृति के साथ अनावश्यक छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए। अन्यथा आगे जाकर इसका गंभीर परिणाम हो सकता है।

2. दूसरे दिन करें मां ब्रह्मचारिणी का पूजन

नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। देवी ब्रह्मचारिणी ब्रह्म शक्ति यानी तप की शक्ति का प्रतीक हैं। इनकी आराधना से भक्त की तप करने की शक्ति बढ़ती है। योग शास्त्र में यह शक्ति स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होती है। अत: समस्त ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र में करने से यह शक्ति बलवान होती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है।

जीवन प्रबंधन

मां ब्रह्मचारिणी हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में बिना तपस्या अर्थात कठोर परिश्रम के सफलता प्राप्त करना असंभव है। बिना श्रम के सफलता प्राप्त करना ईश्वर के प्रबंधन के विपरीत है। इसलिए अगर कोई लक्ष्य प्राप्त करना है तो इसके लिए कठोर परिश्रम करना पड़ेगा तभी सफलता प्राप्त हो सकती है।

3. मां चंद्रघंटा की उपासना करें तीसरे दिन

नवरात्रि का तीसरा दिन माता चंद्रघंटा को समर्पित है। यह शक्ति माता का शिवदूती स्वरूप है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। असुरों के साथ युद्ध में देवी चंद्रघंटा ने घंटे की टंकार से असुरों का नाश किया था। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वत: प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

जीवन प्रबंधन

देवी चंद्रघंटा की मुद्रा युद्ध के लिए तैयार रहने जैसी है। जीवन प्रबंधन की दृष्टि से देखे तो लाइफ में कुछ मुसीबतें अचानक आ जाती हैं। हमें इनसे निपटने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए। जीवन अनिश्चितताओं से भरा है। इसलिए अचानक आई मुसीबतों का सामना भी डट कर करना चाहिए।

4. चौथे दिन की देवी हैं मां कूष्मांडा

नवरात्रि के चौथे दिन की प्रमुख देवी मां कूष्मांडा हैं। देवी कूष्मांडा रोगों को तुरंत नष्ट करने वाली हैं। इनकी भक्ति करने वाले श्रद्धालु को धन-धान्य और संपदा के साथ-साथ अच्छा स्वास्थ्य भी प्राप्त होता है। मां दुर्गा के इस चतुर्थ रूप कूष्मांडा ने अपने उदर यानी पेट से अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न किया है। इसी वजह से दुर्गा के इस स्वरूप का नाम कूष्मांडा पड़ा। मां कुष्मांडा के पूजन से हमारे शरीर का अनाहत चक्र जागृत होता है। इनकी उपासना से भक्तों को आयु, यश, बल और आरोग्य के साथ-साथ सभी भौतिक और आध्यात्मिक सुख भी प्राप्त होते हैं।

जीवन प्रबंधन

देवी कूष्मांडा के हाथों में अमृत से भरा कलश है, जो कि शक्ति व निरोगी जीवन का प्रतीक है। अमृत कलश को पाने के लिए देवता व असुरों में भयंकर युद्ध हुआ था। यदि हमें भी अमृत कलश यानी शक्ति व निरोगी जीवन पाना है तो अपने अंदर की असुर प्रवृत्ति का अंत करना होगा। तभी हम इन्हें प्राप्त कर सकेंगे। 

5. पांचवे दिन करें स्कंदमाता का पूजन

नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता भक्तों को सुख-शांति प्रदान वाली हैं। देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान स्कन्द की माता होने के कारण मां दुर्गा के पांचवे स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जानते हैं। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिए, जिससे कि ध्यान वृत्ति एकाग्र हो सके। यह शक्ति परम शांति व सुख का अनुभव कराती है।

जीवन प्रबंधन

स्कंदमाता हमें सिखाती हैं कि जीवन स्वयं ही अच्छे-बुरे के बीच एक देवासुर संग्राम है व हम स्वयं अपने सेनापति हैं। हमें सैन्य संचालन यानी जीवन की उठापटक से लड़ने की शक्ति मिलती रहे, इसके लिए हमें सदैव सकारात्मक प्रयत्न करते रहना चाहिए।

6. मां कात्यायनी की आराधना करें छठे दिन

नवरात्रि के छठे दिन आदिशक्ति श्री दुर्गा के छठे रूप कात्यायनी की पूजा-अर्चना का विधान है। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। माता कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती हैं तथा रोग, शोक, संताप, भय आदि भी नष्ट हो जाते हैं।

जीवन प्रबंधन

महर्षि कात्यायन की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर ही देवी उनके यहां पुत्री रूप में जन्मी थीं। देवी कात्यायनी के पूजन से शोक व भय का नाश होता है। यदि हम भी जीवन में इनसे परेशान हैं तो हमें भी महर्षि कात्यायन की तरह कठिन तपस्या यानी परिश्रम कर इनसे मुक्ति पाना है। ये भय व शोक मानसिक अवस्था के सूचक हैं। इनके मुक्ति तभी संभव है जब हम जीवन में अपना लक्ष्य निर्धारित करेंगे। 

7. सातवे दिन करें मां कालरात्रि की आराधना

महाशक्ति मां दुर्गा का सातवां स्वरूप है कालरात्रि। मां कालरात्रि काल का नाश करने वाली हैं, इसी वजह से इन्हें कालरात्रि कहा जाता है। नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां कालरात्रि की आराधना के समय भक्त को अपने मन को भानु चक्र जो ललाट अर्थात सिर के मध्य स्थित करना चाहिए। इस आराधना के फलस्वरूप भानु चक्र की शक्तियां जागृत होती हैं। मां कालरात्रि की भक्ति से हमारे मन का हर प्रकार का भय नष्ट होता है। जीवन की हर समस्या को पलभर में हल करने की शक्ति प्राप्त होती है। शत्रुओं का नाश करने वाली मां कालरात्रि अपने भक्तों को हर परिस्थिति में विजय दिलाती है।

जीवन प्रबंधन

असुरों से युद्ध के समय मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप ने ही रौद्र रूप दिखाकर इस युद्ध को निर्णायक स्थिति में पहुंचाया था। जीवन प्रबंधन के दृष्टिकोण से देखा जाए तो जब साधारण प्रयासों से सफलता न मिले तो अपने प्रयासों को और अधिक तेज कर दो। लक्ष्य के लिए डटे रहोगे तो सफलता निश्चित रूप से प्राप्त होगी।

8. आठवे दिन करें मां महागौरी की उपासना

नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। आदिशक्ति श्री दुर्गा का अष्टम रूप महागौरी हैं। मां महागौरी का रंग अत्यंत गौरा है, इसलिए इन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि का आठवां दिन हमारे शरीर का सोम चक्र जागृत करने का दिन है। मां महागौरी के प्रसन्न होने पर भक्तों को सभी सुख स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं। साथ ही इनकी भक्ति से हमें मन की शांति भी मिलती है

जीवन प्रबंधन

देवी महागौरी का वर्ण यानी रंग अत्यंत सफेद है जो कि सकारात्मकता व शांति का प्रतीक है। इससे हमें सीखना चाहिए कि यदि हम समस्याओं के प्रति भी सदैव सकारात्मक दृष्टिकोण रखें तो जीवन में शांति बनी रहेगी। शांति से जीवन में सुख-समृद्धि आएगी और परिवार खुशहाल रहेगा।

9. अंतिम दिन करें मां सिद्धिदात्री का पूजन

नवरात्रि के अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। मां सिद्धिदात्री भक्तों को हर प्रकार की सिद्धि प्रदान करती हैं। अंतिम दिन भक्तों को पूजा के समय अपना सारा ध्यान निर्वाण चक्र, जो कि हमारे कपाल के मध्य स्थित होता है, वहां लगाना चाहिए। ऐसा करने पर देवी की कृपा से इस चक्र से संबंधित शक्तियां स्वत: ही भक्त को प्राप्त हो जाती हैं। सिद्धिदात्री के आशीर्वाद के बाद श्रद्धालु के लिए कोई कार्य असंभव नहीं रह जाता और उसे सभी सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

जीवन प्रबंधन

देवी सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान हैं और मनुष्य, देवता व असुर सभी इन्हें प्रणाम करते हैं। कमल का फूल कीचड़ में उत्पन्न होता है, लेकिन फिर भी सबसे पवित्र माना जाता है। जीवन प्रबंधन के दृष्टिकोण से हमें भी कीचड़ रूपी संसार में रहते हुए अपने मन को साफ रखना चाहिए। तभी हमें सिद्धियां यानी ज्ञान प्राप्त होगा।

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अस्वीकरण – इस लेख में दी गई जानकारियों पर Mandnam.com यह दावा नहीं करता कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले, कृपया संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।