लक्ष्मी प्राप्ति के उपाय । लक्ष्मी जी की कृपा पाने का आसान तरीका, शंखपुष्पी – तंत्र।

लक्ष्मी प्राप्ति के उपाय (Lakshmi Prapti Ke Upay): तंत्र साधना हमारे लिए सदियों से विभिन्न फल देती आई है। मानव जीवन में इसका अपना अलग ही स्थान है। भारतीय समाज का तंत्र साधना में हमेशा वर्चस्व रहा है और यहां एक से बढ़कर एक तंत्र साधना की मौजूदगी समय- समय पर दिखाई देती है।

लक्ष्मी प्राप्ति के उपाय (Lakshmi Prapti Ke Upay)

लक्ष्मी प्राप्ति के उपाय
माँ लक्ष्मी की कृपा पाने का एक उपाय है, शंखपुष्पी – तंत्र। इस तंत्र साधना से साधक को बल एवं धैर्य की प्राप्ति होने के साथ-साथ अपने परिश्रम का मनोनुकूल फल भी मिलता है।

शंखपुष्पी तंत्र

ऐसे ही तंत्र साधना का एक रूप है शंखपुष्पी तंत्र इसे लक्ष्मी जी की कृपा पाने का आसान तरीका भी माना जा सकता है। पुष्य नक्षत्र के दिन शंखपुष्पी की जड़ घर लाकर, इसे देव-प्रतिमाओं की भांति पूजे और तदनंतर चांदी की डिब्बी में प्रतिष्ठित करके, उस डिब्बी को धन अथवा अन्न भंडार के स्थान पर अथवा बक्स-तिजोरी में रख दें। 

यह प्रयोग लक्ष्मीजी की कृपा कराने में अत्यंत समर्थ प्रमाणित होता है। याद रखें कि चाहे जैसी -साधना हो, साधक को उसके प्रति अटूट निष्ठा, अभंग विश्वास, पूर्ण संयम, शुचिता, धैर्य और विनम्र भाव रखना चाहिए। ऐसे किसी भी प्रयोग में संबंधित-देवता का स्मरण-चिंतन बहुत लाभदायक रहता है। 

शंखपुष्पी तंत्र – वस्तु की शुद्धता

तांत्रिक प्रयोगों में वस्तु की शुद्धता बहुत आवश्यक रहती है। उसमें तनिक भी दोष होने साधना खंडित हो जाती है। लगभग यही स्थिति यंत्र-साधना की भी है। यंत्र का रेखांकन और पदार्थ-प्रयोग, शास्त्रीय विधि- विधान के अनुसार न होने पर साधना का सुफल नहीं प्राप्त होता। मंत्र-साधना में भी मंत्रोच्चार की शुद्धता परम आवश्यक है।

जिन साधकों को ऐसे अवसरों पर कठिनाई हो, उन्हें चाहिए कि और सब छोड़कर संबंधित-देवता का स्मरण, चिंतन और नाम-जप पूर्ण निष्ठा के साथ करें। नियम- प्रतिबंध से मुक्त यह आस्था धारित साधना आश्चर्यजनक प्रभाव दिखाती है।

जो लोग अशिक्षित है, असमर्थ है, उनके लिए किसी प्रकार को तंत्र-मंत्र जैसी साधना यही है कि ये परम निष्ठा के साथ अपने इष्ट-देवता अथवा किसी भी देवी-देवता की शरण ले लें। थोड़े ही समय पश्चात वे अनुभव करेंगे कि कोई अदृश्य-शक्ति, चमत्कारी रूप में उन्हें प्रेरणा, बल, धैर्य, धन आदि की प्राप्ति करा रही है।

लगभग सभी संप्रदायों में, सभी धर्मों में थोड़े हेर-फेर से यह तथ्य सर्वस्वीकृत है –

न काष्ठे विद्यते देवो, न पाषाणे न मुण्मये। भावे हि विद्यते देव, तस्माद् भावो हि कारणम्।

अंत में यही कहना पर्याप्त होगा कि मानव-जीवन में सुख, शांति, समृद्धि के लिए जहां व्यक्ति का परिश्रम अनिवार्य है, वहीं उसका प्रारब्ध भी प्रमुख कारक है और आध्यात्मिक-साधना के द्वारा वह अपने परिश्रम तथा प्रारब्ध दोनों को अनुकूलता में परिवर्तित कर सकता है।

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