घर में मंदिर कैसा होना चाहिए, क्यों न हो घर में मंदिर?

घर में मंदिर कैसा होना चाहिए (Ghar Mein Mandir Kaisa Hona Chahiye): लोग अकसर अपने घर में ही भव्य मंदिर बनवा लेते हैं, उसमें मूर्ति भी स्थापित करवा देते हैं। यह वास्तु की दृष्टि से बहुत फलदायक नहीं माना जाता है। क्योकि घर में गृहस्थ रहते हैं, जहां मंदिर की तरह नियमित पूजा संभव नहीं –

घर में मंदिर कैसा होना चाहिए (Ghar Mein Mandir Kaisa Hona Chahiye)

घर में मंदिर कैसा होना चाहिए
Ghar Mein Mandir Kaisa Hona Chahiye?

क्यों न हो घर में मंदिर?

प्रायः लोग अपने घर में मंदिर की स्थापना कर लेते हैं और वहां घर के सदस्य बिना स्नान किए आते-जाते रहते हैं। इससे भगवान का अपमान होता है। शास्त्रों में मंदिर का स्थान पवित्र रखने को कहा गया है। इसीलिए मंदिरों में अलग से पुजारी रखे जाते हैं, जो प्रतिदिन साफ-सफाई करते हैं। साथ ही धूप-दीप-अगरबत्ती जलाकर भगवान को रोजाना भोग लगया जाता है। इससे देवता खुश रहते हैं।

दूसरे मंदिर, गुरुद्वारा, मस्जिद आदि में गुंबद बनाया जाता है, ताकि दूसरा कोई इसके ऊपर न चढ़ सके। जबकि घर में बने मंदिर में लोग मूर्ति तो रख लेते हैं, लेकिन पूजा के नियमों को ठीक से निभा नहीं पाते। मंदिर के छत के ऊपर लोग टहलते हैं, जिस कारण पवित्रता भंग होती है।

शास्त्रों में मूर्ति स्थापना के समय मंत्रों का उच्चारण कर पाठ किए जाने का विधान है। इसके साथ नियमित रूप से मंदिर में भोग आदि लगाने के बाद आरती वगैरह की जाती है। लेकिन घर में बने मंदिर में ऐसा संभव नहीं हो पाता। इससे भगवान के नाराज होने की भी संभावना रहती है।

वास्तु के अनुसार, अगर मूर्ति को घर में रखकर उसका आदर सत्कार न कर सकें तो भगवान नाराज तो होते ही हैं साथ ही वास्तु दोष भी होता है। इसलिए ठीक घर के सामने या घर में मंदिर निर्माण नहीं करवाएं। भगवान मंदिर में नहीं आपके अंदर है, अगर सच्ची आस्था के साथ इनका स्मरण किया जाए तो वे प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सदैव रक्षा करते हैं।

घर में मंदिर कहाँ होना चाहिए?

हां, अगर आप अपने घर में मंदिर बनवा ही रहें हों तो वास्तु के अनुसार, मंदिर ईशान कोण में बनाएं। क्योंकि यह कोना पूजा के लिए उत्तम माना जाता है। जगह की कमी हो तो पूजा घर छोटा ही बनवाएं लेकिन मंदिर ऐसे जगह नहीं बनवाएं जहां हमेशा आना-जाना लगा रहता हो। मंदिर में मूर्ति स्थापना के समय भी विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। मसलन, घर में बने मंदिर में मूर्ति बहुत बड़ी नहीं लगानी चाहिए। यह अलग स्थान पर हो, जहाँ आपका बार-बार जाना न हो। 

विधान के मुताबिक, मंदिर के स्थान की नियमित साफ सफाई की जानी चाहिए। यहां नियमित रूप से दीपक, धूप व अगरबत्ती आदि जलाया जाना चाहिए। मंदिर के ऊपर की छत पर इस प्रकार व्यवस्था करें कि वहां पर किसी का आना-जाना संभव न हो। हां, मंदिर कभी भी सीढ़ी के नीचे, रसोई, बेडरूम या ड्राइंगरूम में नहीं बनाया जाना चाहिए। मंदिर कभी भी बिना ढंके न रखें। इसे परदा या दरवाजे से बंद रखें। 

आपका निजी मंदिर आपके लिए है न कि बाहर के किसी व्यक्ति के लिए बना है। कई लोगों का मत है कि घर से बहुत बड़ा मंदिर नहीं बनाना चाहिए। कुछ हद तक ठीक है क्योंकि धर्मानुसार उसके पालन से कमी होने से पूजा दोष का भय रहता है। यानी घर में बने मंदिर का आकार छोटा ही होना चाहिए।

कुछ खास बातें वास्तु की

घर में अलग-अलग किस्म की लकड़ी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि यह कई बाधाओं को जन्म देती है। कुछ वास्तु ग्रंथों में बबूल की लकड़ी को अच्छा नहीं माना जाता, किंतु मजबूती के कारण इसे ग्राह्य मान लिया गया है।

घर में कांटे तथा दूध वाले पेड़ों की लकड़ी का उपयोग वर्जित माना गया है। दूध वाले वृक्षों गूलर, बरगद और आक आदि की लकड़ी का प्रयोग भी घर के निर्माण में नहीं करना चाहिए। सामान्य नियम यह है कि मुख्य द्वार की चौखट और उसके साथ लगने वाले दरवाजे एक ही प्रकार के वृक्ष की लकड़ी के होना चाहिए।

यही नियम घर में लगने वाली खिड़कियों आदि के लिए भी लागू होता है। जिस नक्षत्र में आपका जन्म हुआ है, उससे संबंधित वृक्ष आपका कुल वृक्ष है। वह कल्पवृक्ष बनकर आपको सुख प्रदान करेगा।

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अस्वीकरण – लेख में उल्लिखित सलाह और सुझाव केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य के लिए हैं। Mandnam.com इसकी पुष्टि नहीं करता है। इसका इस्तेमाल करने से पहले, कृपया संबंधित विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।

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