लघु कथा – एक अकेला बेबस बाप

एक अकेला बेबस बाप (Ek Akela Bebas Baap): अकेलापन हाँ अकेलापन ही न कहेंगें – एक समय माँ, बाप, गुड़िया और मेरे तीन बच्चों से भरा मेरा पूरा परिवार था और आज का दिन है जब न माँ हैं और ना ही गुड़िया। और न ही कोई पूछने वाला साहब जी आज घर कब तक लौटना है। 

एक अकेला बेबस बाप (Ek Akela Bebas Baap)

एक अकेला बेबस बाप
Ek Akela Bebas Baap

अब तो घर में जाने की भी इच्छा ख़त्म सी होने लगी थी, पर क्या करू मेरी छोटी बेटी अभी बहुत छोटी थी जिसकी वजह से घर जाना पड़ता था। 

ज्यादा दिन की बात हो चली है जब गुड़िया के जाने के बाद मेरी शादी की बात उनसे चल रही थी तो यही मेरी भाभी ने अपने रिश्तेदारों की जान पहचान में मेरी शादी कराने के चक्कर में अपने कलाई की नसें काट ली थी। तो मेरे पापा ने एक ही शब्द मुझसे बोला था कि बेटा, ‘किसी की जिद्द के आगे अपने वचन नहीं तोड़े जाते’ पर उन्होंने ये भी बोला था कि ‘अपनी खुशियों के आगे किसी का बसा बसाया घर भी नहीं उजाड़ते’। 

फिर मैं क्या करता बहुत सोचने के बाद 5-6 दिनों बाद बहुत हिम्मत जुटा के मैंने अपनी होने वाली शादी के लिए फ़ोन करने दुल्हन को बस इतना ही बोल पाया कि, ‘शादी के लिए रहने दो मैं नहीं कर पाउँगा’ और मना कर दिया। और उसने भी एक बार भी ये नहीं पूछा कि क्यों मना कर रहे हो क्या बात है ? क्या हुआ है कोई प्रॉब्लम है तो बताओ शायद हम दोनों उसका हल निकाल लें। 

मैं अंदर ही अंदर घुटता रहा और ऐसा टुटा की फिर जैसे सबसे दिल ही  टूट गया। मेरी बड़ी बेटी बहुत समझदार हो गयी थी। उसे समझ आ गया था कि मैं एक दम से टूट चूका हूँ। पर छोटी बेटी और बेटा कुछ समझ नहीं सकें। वो मेरी भाभी से अपनी माँ की तुलना कर के भाभी को मेरे सामने ही नीचा दिखाने लगे। और घर में तनाव बढ़ने लगा। 

और अपने भाई और भाभी के रवैये से तंग आकर जब मैं होटल में रुकने लगा तो गांव के ग़रीबों को उनके ज़रूरत के समय मदद करने वाला कोई नहीं मिल पाता था। तो वो लोग एक दिन मेरे ऑफिस तक पहुँच आये और बहुत आग्रह कर अपने घरों पर शाम की पूजा करवाने के बहाने मुझे गांव में रुकने को मजबूर कर दिया। और मेरे अकेलेपन को बांटने लगे। 

उसी समय एक दिन शाम को किसी बच्चें ने मेरे मोबाइल से खेलते हुए कोई ऍप डाउनलोड कर दिया जिसका नोटिफिकेशन उसके पास भी चला गया जिसको मेरी अब परवाह नहीं रही, फिर भी पता नहीं क्या सोचकर उसने मुझे वीडिओ कॉल कर दिया और मैंने कॉल रिसीव भी कर ली, अमूमन मैं शाम को 7:00 से 7:30 बजे के बीच कोई कॉल रिसीव नहीं करता ! और मैं बाद में कॉल करने की बात करके कॉल रखने लगा तब तक उसने अपनी बात पूरी करते हुए कहा तुम कितने काले लग रहे हो, तो मैंने भी प्रतिउत्तर में बोल दिया काला हूं तो काला ही न दिखूँगा, चूकि गरीबों के घरों में रौशनी की उतनी अच्छी व्यवस्था नहीं हो पाती, जितनी हम लोग अपने यहाँ कर लेते हैं। 

फिर पूजा पूरी करने के बाद मैंने सोचा, चलो अब कॉल बैक कर लेता हूँ। तभी मेरी नन्ही सी बेटी को भूख़ लगने लगी और मैं उनके लिए खाना तैयार करने में जुट गया चूँकि मेरी बेटी कहीं भी हो खाना तो उसे मेरे ही हाँथ का बना चाहिए। खाना बनाना और फिर खाना खिलाने में कॉल करने की बात दिमाग से उतर गयी। 

फिर दूसरे दिन ऑफिस में जैसे ही लंच करके उठा तो, मेरी छोटी सलहज की कॉल आ गयी। तो सोचने लगा उठाऊ या न उठाऊ इतने में एक कलीग ले फ़ोन रिसीव करके हाथ में थमा दिया। फिर उनसे हाल चाल हुआ। वो थोड़े मज़ाकिया किस्म की महिला है तो कितना भी कम बात में बात पूरी करना चाहो तो देर हो ही जाती है। 

उसी के बाद मुझे ध्यान आया की कल मैं उनको मैंने कॉल नहीं किया चलो जल्दी से कॉल कर लेता हूँ। पर क्या हुआ मैं कॉल पर कॉल करता रहा लेकिन मजाल है जो मेरी कॉल रिसीव हो जाये। मुझे लगा चलो ठीक है, हो सकता है कही काम में व्यस्त हो इसलिए उसने मेरी कॉल रिसीव नहीं की होगी।  

फिर अपने आप ही सोचने लगा कि मेरी कहानी भी तो अजीब ही है ना जिसने भी समझा मेरे बारे में गलत ही समझा। चाहे मेरा खुद का भाई हो मेरी भाभी हो, रिश्तेदार हो।  तो तुमने नहीं समझा तो कौन सा मेरे साथ नया हुआ। सब छोड़ दो अकेला मुझे एक दिन देर से ही सही पर मरना तो सभी को है। मैं एक दिन पहले मर जाऊंगा और क्या ?

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