दर्पण त्राटक के अनुभव, दर्पण साधना से अध्यात्मिक कायाकल्प

दर्पण त्राटक के अनुभव (Darpan Tratak Ke Anubhav): साधना का उद्देश्य आत्मसत्ता को परिष्कृत करना है। साहस और कौशल प्राप्त करने के लिए विभिन्न अध्यात्म साधनाएं की जाती हैं। दर्पण साधना का उद्देश भी आध्यात्मिक शक्ति को जागृत करना है। आइए जानें आत्मासत्ता को साधने में दर्पण की भूमिका –

दर्पण त्राटक के अनुभव (Darpan Tratak Ke Anubhav)

दर्पण त्राटक के अनुभव
Darpan Tratak Ke Anubhav

वैसे तो चेहरे के सौंदर्य को निखारने के लिए आप आईने की मदद तो लेते ही होंगे। लेकिन क्या कभी अध्यात्मिक कायाकल्प के लिए भी दर्पण का प्रयोग किया? शायद आपको यकीन ना हो लेकिन दर्पण की सहायता से आध्यात्मिक कायाकल्प भी किया जा सकता है। 

दर्पण साधना ज्ञान

मान्यता है कि साधना के अलावा उपासना, योग जैसे उपायों से आत्मपरिष्कार किया जाए तो साधारण मनुष्य भी मानव से महामानव, ऋषि, देवता बन सकता है। आत्मपरिष्कार के लिए सतत अभ्यास, साधना और समर्पण जरूरी है। दर्पण साधना के बारे में मान्यता है कि इसकी सतत अभ्यास के बाद आत्मा का प्रतिबिंब देखा जा सकता है। 

क्योंकि आईना में सच्ची तस्वीर ही झलकती है। दर्पण साधना की गिनती उच्चस्तरीय साधना में की जाती है। पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के मुताबिक इस स्थूल शरीर के साथ अपना प्राण शरीर भी है, इसे ईथरिक डबल या छाया पुरुष भी कहते हैं। यह स्थूल शरीर की अपेक्षा अधिक क्षमता संपन्न होता है। 

मानव शरीर में अन्यमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश और आनंदमय कोश होते हैं। इन पंचकोशों के जागरण में दीपक साधना काफी मददगार हो सकती है। इस साधना के जरिए व्यक्ति खुद के बारे में जानने और समझने का प्रयास करता है। 

त्राटक साधना की तरह यह साधना आंतरिक उर्जा को सशक्त बनाने का अच्छा तरीका है। यह ऐसा तप है जो हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन को सुख शांति और समृद्धि से भर देता है। यदि है साधना पूरे मनोयोग और बगैर किसी कामना से किया जाए तो जल्द ही आध्यात्मिकता का बोध होने लगता है। 

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अनुशासन जरूरी 

इसके साधना के दौरान मौन और एकांत सेवन जरूरी है। साथ ही साधनाकाल में भोजन सात्विक और सुपाच्य होना चाहिए। इसमें मानसिक जप की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं होता। संख्या की जगह ध्यान सहित उसकी गहराई और बढ़ाने, भावविव्हल होकर जप करने पर अधिकर जोर देना चाहिए। 

इसके लिए प्रतिदिन करीब 6 घंटे तक समय दिया जा सकता है। यह साधना शुरू करने से पहले विधिवत संकल्प लिया जाना चाहिए। 

दर्पण साधना बनाने की विधि / कैसे करें आत्मदेव की साधना 

दर्पण इतना बड़ा होना चाहिए कि सिर से कमर तक का बिम्ब उसमें स्पष्ट दिखाई दे। उसे अपने सामने इस प्रकार रखें कि बैठने पर सिर से कमर तक का बिम्ब आपको ठीक तरह से आईने में दिखाई पड़े। साधना स्थल पर बैठने के बाद अपने बिम्ब को कुछ समय तक गौर से देखें। 

सबसे पहले शरीर के महत्वपूर्ण अंगों का अवलोकन करें फिर बिम्ब की स्थूल सीमा के चारों ओर एक तेजोवलय देखने का प्रयास करें। फिर आंखें बंद करके अपने चारों ओर तेजोवलय अनुभव करने का प्रयास करें। यह क्रम कुछ समय तक दुहराते रहें। दर्पण साधना मंत्र, इस दौरान गायत्री मंत्र या कोई अन्य मंत्र का मन ही मन जप करना बेहतर होगा। 

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भावना 

भाव करें कि साधना के प्रभाव से प्राण शरीर की छमता क्रमशः बढ़ रही है। विचार करें कि इस स्थूल काया के साथ जुड़ा जो चेतन है वह बड़ा समर्थ एवं ज्ञानी-विज्ञानी है। वह हमारे अंदर की सारी कमियों और विशेषताओं को जानता है। 

कमियों को, दोषों को दूर करने तथा सुप्त क्षमताओं को जगाने में समर्थ है। हम अभी तक अपने अंतःचेतना की ओर ध्यान नहीं देते रहे हैं, बाहरी दुनिया की ओर ही हमारा विशेष झुकाव रहा है। इसलिए वह रुठा हुआ है। वह हमसे बोला नहीं। आत्मादेव को मनाएं तो वह जीवन को क्या से क्या बना सकता है। 

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