दुकड़ी बाला देवी | आजादी के आंदोलन की पहली महिला क्रांतिकारी – जिन्हें असहनीय कष्ट दिए गए

दुकड़ी बाला देवी (Dukdi Bala Devi): का जन्म 1887 में हुआ था। वह वीरभूम जिला के नलहटी थाना के झाऊपाड़ा गांव की, एक अनपढ़, गरीब लड़की थीं। उनके पिता नीलमणि चट्टोपाध्याय क्रांतिकारियों से सहानुभूति रखते थे।

Dukdi Bala Devi – आजादी के आंदोलन की पहली महिला क्रांतिकारी

दुकड़ी बाला देवी
Dukdi Bala Devi

दुकड़ी बाला देवी की साक्षर होने की जिज्ञाषा 

एक बार ज्योतिष घोष नाम के एक क्रांतिकारी उनके घर में आकर ठहरे। वह नलिन बाबू के नाम से आए थे और विपिन बाबू के नाम से लौटे थे। वहां रह कर व्यायाम कक्षाएं चलाते रहे थे, जिसमें लाठी, छुरा चलाने का प्रशिक्षण भी दिया जाता था। दुकड़ी बाला को यह सब जानने की जिज्ञासा हुई। अपने भानजे से पूछा तो उसने कहा, “मौसी, तुम क्या करोगी यह जान कर? क्या तुम्हें पढ़ना-लिखना आता है?” बात दुकड़ी बाला को लग गई। वह भानजे से पढ़ना-लिखना सीखने लगीं। फिर लुका-छिपा कर क्रांतिकारी आन्दोलन से संबंधित चीजें भी पढ़ने लगीं। भानजा निवारण घटक स्वयं क्रांतिकारी था। जिद करके दुकड़ी बाला ने उससे छुरा और बंदूक चलाना भी सीख लिया।

दुकड़ी बाला देवी का विवाह 

दुकड़ी बाला की शादी फणिभूषण चक्रवर्ती से हुई तो पति भी इस काम में सहायक मिले। दुकड़ी बाला का भानजा चोरी-छिपे लाए हथियार इस घर में भी छिपा कर रखने लगा। हरिदास दत्त नामक एक विप्लवी ने छद्म वेश में एक शस्त्र कंपनी के गोदाम से 200 हथियारों का एक बक्सा चुरा लिया था। इसी चोरी की खोज में जनवरी 1917 में दुकड़ी बाला का घर भी घेर लिया गया। तलाशी के बाद वहां से चोरी की सात पिस्तौलें मिलीं। दकड़ी बाला देवी गिरफ्तार हो गईं।

गिरफ्तारी और यातनाएं 

गिरफ्तारी के बाद दुकड़ी बाला को बहुत यातनाएं दी गई कि वह हथियार चोरी में शामिल सभी लोगों के नाम-पते बताएं। पर उन्होंने मुंह नहीं खोला। उनकी गोद में छोटा सा दुधमुंहा बच्चा था। उसे भी जेल में साथ रखने की इजाजत नहीं दी गई। विशेष अदालत ने उन्हें दो साल के कड़े श्रम के साथ कारावास की सजा दी। भानजा निवारण घटक पांच साल की सजा पाकर पहले ही जेल पहुंच चुका था।

गरीब स्त्री समझ कर जेल में दुकड़ी बाला देवी पर बहुत अत्याचार किया गया। उनसे इतना कठिन श्रम लिया जाता था कि बेचारी बेदम हो जाती थीं। सख्त बान बंट-बंट कर उनके हाथ छिल गए थे। जेल-रसोई का आटा भी चक्की पर उन्हीं पिसवाया जाता था। ननी बाला देवी उन दिनों उसी जेल में थीं। उनसे दुकडी बाला का यह कष्ट देखा नहीं गया और उन्होंने इसके विरोध में जेल में भूख हड़ताल कर दी। अधिकारियों की जोर-जबर्दस्ती के बावजूद, ननी बाला देवी ने अपनी भूख हड़ताल तभी खोली थी, जब दुकड़ी बाला देवी का श्रम घटा दिया गया था।

जेल में इतना कष्ट पाने पर दुकड़ी बाला देवी घर पर पिता को यही लिखती थीं कि वह ठीक हैं। दिसम्बर 1918 में उन्हें जेल से रिहाई मिल गई।

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